Corona virus : संक्रमित गंभीर मरीजों के लिए संजीवनी बना प्रोन पोजिशन Prayagraj News
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर व न्यूरो फिजिशियन डॉ. कमलेश सोनकर ने एसआरएन अस्पताल के आइसीयू में भर्ती कोरोना मरीजों पर इस तकनीक सकारात्मक प्रयोग किया है।
प्रयागराज,जेएनएन। स्वरूपरानी नेहरू कोविड अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों के इलाज में प्रोन पोजिशन संजीवनी बन रहा है। इस तकनीक में ऐसे मरीजों को पेट के बल लिटा देेते हैं जिनमें ऑक्सीजन की सप्लाई गड़बड़ा जाती है। कोविड आइसीयू में भर्ती एक दर्जन से अधिक मरीजों को इससे लाभ भी मिला है। लखनऊ के एसजीपीजीआइ व राममनोहर लोहिया संस्थान इस तकनीक का इस्तेमाल कोरोना मरीजों पर पहले से कर रहे हैं।
सांस लेने दिक्कत वाले मरीजों को मिलती है राहत
एसआरएन लेवल थ्री कोविड अस्पताल में अधिकतर ऐसे कोरोना मरीज हैं जिन्हेंं सांस लेेने में ज्यादा समस्या होती है। कोरोना वायरस सबसे पहले श्वसन तंत्र पर हमला कर रहा है, खासकर फेफड़े को एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) का शिकार बना रहा है। इससे ऑक्सीजन की सप्लाई बिगडऩे लगती है। इन मरीजों को वेंटीलेटर की जरूरत होती है। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर व न्यूरो फिजिशियन डॉ. कमलेश सोनकर ने एसआरएन अस्पताल के आइसीयू में भर्ती कोरोना मरीजों पर इस तकनीक सकारात्मक प्रयोग किया है। डॉ. कमलेश इस तकनीक का प्रयोग चार साल पहले लखनऊ के एसजीपीजीआइ में कर चुके हैं। पिछले दिनों उनकी ड्यूटी एसआरएन के कोविड वार्ड में लगी तो उन्होंने यहां भी इसका प्रयोग किया। जिससे मरीजों को राहत मिली।
ऐसे होता है प्रोन पोजिशन
डॉ कमलेश सोनकर ने बताया कि मरीजों को प्रोन पोजिशन में कई घंटे तक पेट के बल लिटाया जाता है ताकि उनके फेफड़ों में जमा तरल पदार्थ मूव कर सके। अधिकांश कोरोना मरीजों के फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है इससे परेशानी और बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में उनको पेट के बल लिटाते हैं, मरीज का चेहरा नीचे रहता है और इससे उनका फेफड़ा बढ़ता है। इंसान के फेफड़े का भारी हिस्सा पीठ की ओर होता है इसलिए जब कोई पीठ के बल लेटकर सामने देखता है तो फेफड़ों में ज्यादा ऑक्सीजन पहुंचने की संभावना कम होती है।