अमर शहीद को महामहिम का नमन
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : आजाद पार्क की रंगत शुक्रवार की दोपहर बदली-बदली सी थी। परिसर रंग
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : आजाद पार्क की रंगत शुक्रवार की दोपहर बदली-बदली सी थी। परिसर रंग-बिरंगे फूलों की मालाओं से सजा था। फर्श पर बिछी लाल चटाई खूबसूरती को बढ़ा रही थी। कहीं भी गंदगी का नामो निशान नहीं था। हर ओर पुलिस-प्रशासन के आलाधिकारियों का कड़ा पहरा। सुरक्षा व्यवस्था ऐसी कि प¨रदा पर भी न मार सके। यह व्यवस्था थी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के स्वागत में। राष्ट्रपति देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद को नमन करने उनकी शहादत स्थली पर आने वाले थे। यह पहला मौका था जब देश के राष्ट्रपति आजाद को श्रद्धांजलि अर्पित करने उनकी प्रतिमा पर आए।
राष्ट्रपति कोविंद का काफिला 3.11 बजे आजाद पार्क पहुंचा। मुख्य द्वार खुला होने के बावजूद उनकी गाड़ी बाहर ही रुक गई। राष्ट्रपति के साथ उनकी गाड़ी में राज्यपाल राम नाईक भी सवार थे। जबकि दूसरी गाड़ी में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व चिकित्सा स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह थे। सभी सीढि़यों से चढ़कर ऊपर पहुंचे। आजाद की प्रतिमा से चंद कदम दूरी पर दो कुर्सी रखी थी, जिसमें बैठकर राष्ट्रपति व राज्यपाल ने अपने जूते उतारे। इसके बाद राष्ट्रपति आजाद की प्रतिमा स्थल पर पहुंचे। वहां पुष्पांजलि अर्पित करके आजाद की आदमकद प्रतिमा के समक्ष शीश झुकाया। वह हाथ जोड़कर कुछ देर तक बंद आंखों से आजाद को नमन करते रहे। इसके बाद वापस लौटे। सीढि़यों से उतरने से पहले राष्ट्रपति पुन: घूमकर आजाद की प्रतिमा को निहारने लगे। फिर राज्यपाल के कान में कुछ बोले। इसके बाद राज्यपाल नाईक, डिप्टी सीएम केशव व मंत्री सिद्धार्थनाथ के साथ खड़े होकर प्रतिमा के सामने फोटो खिंचवाया। फिर 3.19 बजे राष्ट्रपति का काफिला आजाद पार्क से रवाना हो गया।
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प्रोटोकॉल तोड़कर आए थे मोदी
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आजाद को नमन करने उनकी प्रतिमा स्थल पर आए थे। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 जून 2016 की सुबह प्रोटोकॉल तोड़कर आजाद पार्क आए थे। बिना किसी तय कार्यक्रम व सूचना के आजाद पार्क पहुंचे प्रधानमंत्री ने आजाद को पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद पार्क के चारों ओर भ्रमण किया था।
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श्रीराम के प्रयास से लगी प्रतिमा
आजाद की प्रतिमा जहां लगी है वहीं उन्होंने अंग्रेजों से मोर्चा लेते हुए अपनी अंतिम गोली से खुद को शहीद कर लिया था। वह स्थल तक कंपनीबाग के रूप में जाना जाता था। आजादी के बाद भी उसकी पहचान कंपनीबाग के रूप में थी और आजाद की शहादत स्थल पर चारों ओर जंगल था। इसके विरोध में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रनेता श्रीराम द्विवेदी 1967 में भूख हड़ताल पर बैठ गए। श्रीराम के आंदोलन का हिस्सा रहे वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक नरेंद्रदेव पांडेय बताते हैं कि हमारी मांग थी कि जहां आजाद शहीद हुए उस स्थान पर उनकी प्रतिमा लगे, साथ ही स्थान का नामकरण भी आजाद के नाम पर हो। छात्रों के आंदोलन के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा, इसके बाद आजाद की प्रतिमा लगी।
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कुत्ते ने किया परेशान
राष्ट्रपति के आने से पहले आजाद पार्क के अंदर एक कुत्ता घुस गया। कुत्ते को देखकर सुरक्षा में तैनात पुलिस कर्मियों के हाथ-पांव फूल गए, उन्होंने उसे दौड़ाना शुरू किया तो वह काफी देर तक पार्क के अंदर घूमता रहा। जब काफी प्रयास के बाद वह बाहर निकला तो सबने राहत की सांस ली।