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तीर्थ पुरोहितों के पास यात्रियों के प्रयागराज आने की है प्रामाणिकता, बहीखाते पर कराते हैं हस्‍ताक्षर

प्रयागवाल सभा के राजीव भारद्वाज बताते हैं कि तीर्थ यात्रियों से बही खाते पर हस्‍ताक्षर उनके विवरण के साथ कराया जाता है ताकि उनके प्रयाग में आने की प्रमाणिकता रहे। भविष्य में परिजनों के आने पर यह सिद्ध करता है कि वे सही तीर्थ पुरोहित के पास आए हैं।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 03:45 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 03:45 PM (IST)
तीर्थयात्रियों से बही खाते पर सिगनेचर विवरण के साथ कराया जाता है ताकि उनके प्रयाग में आने की प्रमाणिकता रहे।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में तीर्थ पुरोहितों के पास तीर्थ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की वंशावली के साथ उनके हस्ताक्षर भी हैं। बही खाते पर सिगनेचर कराने के पहले तीर्थ पुरोहित यानी पंडे श्रद्धालु का पूरा विवरण रजिस्टर पर लिखते हैं। फिर उसी रजिस्टर पर उनका सिगनेचर भी कराते हैं। तीर्थ यात्रियों से संकल्प भी कराया जाता है। यदि पूजन अर्चन के समय तीर्थ यात्री के पास संकल्प कराया गया धन इत्यादि नहीं रहता है तो उसे बाद में देने की बात कही जाती है। बहुत से पंडे ऐसे तीर्थ यात्रियों को भविष्य में उनके संकल्प की याद भी दिलाते हैं। कुछ पंडे दूसरे जिलों से आने वाले तीर्थ यात्रियों के घर जाकर संकल्प की गई सामग्री लेकर आते हैं।

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खानदानी रीति रिवाज से पूजा कराते हैं पंडे
प्रयागवाल सभा के राजीव भारद्वाज बताते हैं कि तीर्थ यात्रियों से बही खाते पर सिगनेचर उनके द्वारा दिए गए विवरण के साथ इसलिए कराया जाता है कि उनके प्रयाग में आने की प्रमाणिकता रहे। भविष्य में उनके परिजनों के आने पर यह हस्ताक्षर यह सिद्ध करता है कि वे सही तीर्थ पुरोहित के पास आए हैं। तीर्थ पुरोहित खानदानी रीति रिवाज के हिसाब से पूजा पाठ कराते हैं। तीर्थ पुरोहित वंशावली के हिसाब से भी हैसियत के अनुरूप संकल्प कराते हैं। प्रयाग के पंडे किसी भी यजमान को परेशान नहीं करते हैं और न ही धर्म संकट में डालकर दान दक्षिणा के लिए संकल्प कराते हैं। जो यजमान अधिक दान दक्षिणा देकर जाते हैं उसका लेखा जोखा तीर्थ पुरोहित अपने रखते हैं। भारद्वाज बताते हैं कि देश के सभी तीर्थ स्थानों पर ऐसी व्यवस्था है। सभी पंडे इसी व्यवस्था के तहत काम करते हैं।


देश के विभिन्न तीर्थ स्थानों के पंडे आपस में रखते हैं एक दूसरे से जुड़ाव
तीर्थ पुरोहित राजीव भारद्वाज बताते हैं कि देश भर के पंडे एक दूसरे से जुड़ाव रखते हैं। गया और बद्र्रीनाथ के पंडों का आपस में लिंक रहता है। वैसे भी प्रयाग के बाद लोग अपने पुरखों का पिंडदान करने गया ही जाते हैं। ऐसे में तीर्थ यात्रियों की वंशावली गया के पंडों के पास भी सुरक्षित रहती है। बद्रीनाथ में भी पिंडदान होता है। वहां के पंडे ही अपने यजमान का विवरण रखते हैं। बद्रीनाथ में पूर्वांचल के काफी पंडे रहते हैं। मंदिर के पट बंद होने पर यह पंडे इधर ही आ जाते हैं। यहां वे उन यजमानों के घर भी जाते हैं जो बद्रीनाथ जाने पर उनसे पूजा कराते हैं और दान दक्षिणा के लिए संकल्प कराते हैं। माघ मेला और कुंभ में अन्य तीर्थ स्थानों के पंडे यहां बड़े ठाठ बाठ से आते हैं। कुछ अपनी व्यवस्था से आते हैं और कई यहां के तीर्थ पुरोहितों या अपने यजमान के आवास पर रुकते हैं।


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