Martyrs Place of Sacrifice : प्रतापगढ़ में शहीद स्थलों की उपेक्षा से क्षुब्ध हैं लोग, सरकार से है उम्मीद
प्रतापगढ़ जिले में शहीद स्थल इन दिनों प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार हैं। लोगों का कहना है कि सेनानियों से पहचाने जाने वाले गांव की उपेक्षा उन्हें सहन नहीं होती।
प्रतापगढ़, जेएनएन। कहा जाता है कि बलिदानी कभी भुलाए नहीं जा सकेंगे, पर यहां यह बात सही नहीं लग रही है। जिले में कई ऐसे स्थल हैं, जहां से अमर बलिदानियों की यादें जुड़ी हैं, पर वह स्थल बदहाल हैं। जिले के खासकर रूरे सहित शहीद स्थलों की उपेक्षा पर स्वतंत्रता सेनानियों के स्वजन चिंतित हैं। उनमें प्रशासनिक उपेक्षा को लेकर आक्रोश भी है। वह सरकार से गुजारिश कर रहे हैं कि आजादी के दीवानों के सपनों को यूं न तोड़ा जाए।
पुरखों की बहादुरी है कि हम आज आजाद हैं
रूरे के राम लखन सिंह का कहना है कि जिस समय आजादी के लिए रूरे गांव में किसान आंदोलन था, उस समय हम लोगों का बचपन था। हमारे पुरखों की बहादुरी है कि हम लोग आज आजाद हैं। स्वतंत्रता सेनानी सहदेव ङ्क्षसह की बहू कमला देवी बताती हैं कि मेरे ससुर ने बाबा रामचंदर के साथ मिलकर किसान आंदोलन किया, इसका हमें हमेशा गर्व महसूस होता है। देर से ही सही सरकार द्वारा ताम्रपत्र दिया गया। इससे हमारी अलग पहचान है।
शहीद स्थल की दुर्दशा को दूर करने का सरकार से अनुरोध
सहदेव के पौत्र सूबेदार सिंह का कहना है कि हमारे गांव के वीर सपूतों ने आजादी की लड़ाई में योगदान देकर भारत देश को आजाद ही नहीं कराया अपितु पूरे विश्व में किसान आंदोलन का डंका भी बजाया। सरकार से अनुरोध है कि शहीद स्थल की दुर्दशा को दूर करे। इसे पर्यटन स्थल घोषित किया जाए। गांव के लाल प्रताप ङ्क्षसह कहते हैं कि हमसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से पहचाने जाने वाले गांव की उपेक्षा सहन नहीं होती। कम से कम सरकारों को इस बारे में जरूर ही सोचना चाहिए। अगर ऐसी ही उपेक्षा होती रही तो भला हम नई पीढ़ी को उसके इतिहास से कैसे जोड़ पाएंगे।