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अब नीले और हरे शैवाल से बना बिस्किट करेगा कुपोषण का काम तमाम Prayagraj News

अब कोपोषण के खात्‍मे के लिए नीले और हरे शैवाल से बने बिस्किट काफी मददगार साबित हो सकेंगे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग की शोध छात्रा ने इसे तैयार किया है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 03 Sep 2019 08:23 AM (IST)Updated: Tue, 03 Sep 2019 08:23 AM (IST)
अब नीले और हरे शैवाल से बना बिस्किट करेगा कुपोषण का काम तमाम Prayagraj News
अब नीले और हरे शैवाल से बना बिस्किट करेगा कुपोषण का काम तमाम Prayagraj News

प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के गृह विज्ञान विभाग में एक शोध में स्पाइरूलिना नामक नीले-हरे शैवाल से ऐसा बिस्किट तैयार किया गया है, जो कुपोषण का दुश्मन साबित होगा। इसे ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज की अतिथि प्रवक्ता डॉ. अम्मतुल फातिमा ने तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. संगीता श्रीवास्तव के निर्देशन में किए गए शोध में तैयार किया है।

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बिस्किट में है पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा

 डॉ. फातिमा ने बताया कि प्रयागराज के ग्रामीण क्षेत्रों में हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। इसके अलावा लड़कियों में एनीमिया की भी समस्या गंभीर है। ऐसे में विभागाध्यक्ष रहीं प्रो. संगीता श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में शोध के दौरान उन्होंने एक खास तरह का बिस्किट तैयार किया। बताया कि वर्ष 2011 से इस पर काम चल रहा था। बिस्किट की खासियत यह है कि इसमें प्रोटीन के साथ कैल्शियम, फॉस्फोरस, ऑयरन, जिंक, फाइबर आदि पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा है। कुपोषित को रोज तीन बिस्किट देने से यह शरीर में पोषक तत्वों की कमी दूर कर सुपोषित करने का काम करेगा।

क्या है स्पाइरूलिना

स्पाइरूलिना पोषक तत्वों से भरपूर एक नीला-हरा शैवाल है। यह एल्गी सुपर फूड में शुमार है। इसमें 70 फीसद प्रोटीन पाया जाता है। इसमें कोलेस्ट्राल और स्टार्च नहीं पाया जाता है। इसमें सोडियम और कैलोरी की भी मात्रा काफी कम होती है। एंटी ऑक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा पाई जाती है।

बिस्किट की विशेषता

डॉ. फातिमा ने बताया कि स्पाइरूलिना  नामक नीले-हरे शैवाल में सोयाबीन से दोगुना, अंडे से छह गुना, दाल से तीन गुना और मांस से चार गुना प्रोटीन है। इसकी पोषण क्षमता गाय के दूध से 14 गुना है। एक बिस्किट की कीमत 1.25 रुपये होगी।

300 लोगों पर हुआ परीक्षण

पोषक तत्वों से भरपूर बिस्किट का फूड लैब में परीक्षण किया गया। इसके बाद चार-चार बिस्किट तीन माह तक 300 लोगों को खिलाया गया। इसके बाद बिस्किट खाने वालों की जांच कराई गई तो उनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा पहले की तुलना में बढ़ी मिली।

प्राथमिक स्कूलों तक पहुंचाया जाएगा  बिस्किट

डॉ. अम्मतुल फातिमा कहती हैं कि छह से आठ महीने में इस बिस्किट का फाइनल पेटेंट हो जाएगा। इसके बाद वह ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण दूर करने के लिए इसे प्राथमिक स्कूलों में पहुंचाने का प्रयास करेंगी।


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