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धार्मिक स्थलों का नहीं हुआ विकास, पर्यटकों को हो रही असुविधा

जिले के छह धार्मिक स्थलों को विकसित करने के लिए कार्ययोजना तैयार कर वहां का विकास कार्य कराने के लिए 22 करोड़ रुपये की मांग की गई थी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 07:20 AM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 07:20 AM (IST)
धार्मिक स्थलों का नहीं हुआ विकास, पर्यटकों को हो रही असुविधा

प्रयागराज : प्रयागराज से सटा कौशांबी जनपद पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध है। यहां पर महात्मा बौद्ध, महावीर जैन, कवि मलूकदास, राजा जयचंद्र, ख्वाजा कड़क शाह की मजार और शक्तीपीठ शीतला माता का मंदिर है। जन प्रतिनिधियों की पहल पद इन धार्मिक स्थलों को विकसित करने के लिए एक वर्ष पूर्व जिला प्रशासन ने पर्यटन विभाग के माध्यम से स्टीमेट तैयार कर शासन से धन मांगा था। लंबा समय बीतने के बाद तीर्थ स्थलों का विकास के लिए धन नहीं दिया गया है।

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दोआबा में ¨हदू धर्म के तीर्थ स्थलों के साथ ही मुस्लिम, बौध व जैन धर्म के तीर्थ स्थल हैं। यहां पर विदेशी पर्यटकों का अकसर आना-जाना लगा रहता है। जनपद सृजन के डेढ़ दशक बाद भी इन धार्मिक स्थलों का समुचित विकास नहीं हो सका। इसकी वजह से यहां पर आने वाले पर्यटकों को काफी असुविधा होती है।

सांसद विनोद सोनकर व चायल विधायक संजय गुप्ता की वजह से धार्मिक स्थलों को विकसित करने के लिए जिला प्रशासन व पर्यटन विकास से एक वर्ष पूर्व कार्य योजना मांगी गई थी। जिले के छह धार्मिक स्थलों को विकसित करने के लिए कार्ययोजना तैयार कर वहां का विकास कार्य कराने के लिए 22 करोड़ रुपये की मांग की गई थी। भेजी गई कार्य योजना की पत्रावली शासन स्तर पर धूल फांक रही है। विकास कार्य के लिए ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। इन स्थलों के विकास को भेजी कार्य योजना :

शीतला देवी मंदिर : शीतला देवी मंदिर की पौराणिक मान्यता है। पुराणों के अनुसार भगवन शिव की पत्नी शती का जब अपने पिता द्वारा पति का अपमान किया जाना सहन नहीं कर पाई तो एक कुड़ में कूद गई। इसके बाद शिव शती का शव लेकर तीनों लोक में तांडव करने लगे थे। संसार को उनके प्रकोप से बचाने के लिए भगनव विष्णु ने उनके शरीर के 51 टुकड़े कर दिया। जो अंग जहां गिरा वहीं शक्ति पीठ स्थापित हो गया। मान्यता के अनुसार कड़ा में उनका हाथ का पंजा कड़ा के साथ गिरा। संत मलूकदास : मध्ययुग के कवि संत मलूकदास ने कड़ा में जन्म लिया था। उनकी जन्म, कर्म व समाधि स्थली कड़ा में ही है। संत मलूकदास ने इस्लामी आक्रामण के दौरान अपने संदेश व शिक्षा से समाज को नई दिशा दी थी। उनके प्रभाव को इस्लामी शासक भी मानते थे। साल में एक बार समाधि स्थल पर मेला लगता है। जयचंद्र किला : कन्नौज के राजा जयचन्द्र ने तीर्थ क्षेत्र कड़ा में किले का निर्माण कराया था। यह किला गंगा नदी से सटा है। किले का कुछ हिस्सा टूट कर गिर जाता है। इसकी सुरक्षा को लेकर भी कोई प्रबंध नहीं है। अपने आम में सैकड़ों साल का इतिहास संजोए इस किले को संरक्षण की दरकार है। पभोषा पहाड़ : जैन समुदाय के छठें तीर्थंकर भगवान पदम प्रभु के जन्म, कर्म व समाधि स्थल का गवाह पभोषा का पहाड़ है। इस अलौकिक पहाड़ पर स्थित गुफाएं आज भी अपने आप में तमाम रहस्य समेटे हुए हैं। चांदनी रात में पहाड़ का सौंदर्य अद्वितीय हो जाता है। पहाड़ के नीचे मंदिर स्थित है। जैन मंदिर जैनियों के लिए आस्था का केंद्र है। बौद्ध मंदिर : कोसम ईनाम में भगवान गौतम बुद्ध ने चर्तुमाषा किया था। गौतम बुद्ध ने राम विहार में रहकर तप करने के साथ शांति और अंहिसा का उपदेश दिया था। गौतम बुद्ध की इस तपोस्थली को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान मिला है। बुद्ध के अनुयायी जब तक यहां नहीं आते हैं, उनकी तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है। यही कारण है कि कंबोडिया समेत पूरे विश्व से बौद्ध धर्म अनुयायी हर साल भारी संख्या में यहां आते हैं। कड़क शाह की मजार : तीर्थ क्षेत्र कड़ा में करीब 723 साले पहले ख्वाजा कड़ शाह बाबा आए थे। उन्होंने लोगों के बीच आपसी भाई चारे का संदेश दिए थे। साथ ही फैली कुप्रथाओं का विरोध किया था। आज भी उनके बताए संदेशों को लेकर लोग संजीता है। जनपद के छह धार्मिक स्थलों का विकास कराने के लिए एक वर्ष पूर्व पर्यटन विभाग के माध्यम से कार्य योजना शासन को भेजी गई। छह माह पूर्व बीस लाख रुपये दिया गया था। इससे कोसम खिराज में एक धर्मशाला का निर्माण कराया गया है। धन मिलने के बाद दूसरे धार्मिक स्थलों को विकसित किया जाएगा।

- मनीष कुमार वर्मा, डीएम कौशांबी।


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