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नेत्र अस्पतालों में संसाधन बढ़ाने की जरूरत

मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रीतमदास सभागार में दो दिवसीय कार्यक्रम का समापन रविवार को हुआ। इस दौरान जहां आंख की विभिन्न बीमारियों पर विशेषज्ञों ने अनुभव साझा किए वहीं कार्निया, रेटीना, मोतियाबिंद पर चिकित्सकों ने शोध पढ़े। इस दौरान नेत्र अस्पतालों में संसाधन बढ़ाने की भी जरूरत बताई।

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 May 2018 10:01 AM (IST)Updated: Mon, 21 May 2018 10:01 AM (IST)
नेत्र अस्पतालों में संसाधन बढ़ाने की जरूरत
नेत्र अस्पतालों में संसाधन बढ़ाने की जरूरत

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रीतमदास सभागार में आयोजित नेत्र विशेषज्ञों की कांफ्रेंस में डॉक्टरों ने अपने साथियों संग अनुभव साझा किए। इलाहाबाद आपथल्मोलाजिकल सोसाइटी के पहले वार्षिक कांफ्रेंस में मेडिकल छात्रों ने भी अपने सवाल पूछे। डॉक्टरों ने खुद के द्वारा किए गए आंखों के आपरेशन को वीडियो के जरिए सबके सामने विस्तार से दिखाया। डॉक्टरों ने कहा कि अधिकांश नेत्र अस्पतालों में संसाधन बढ़ाने की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि कोयंबटूर मेडिकल कॉलेज से डॉ. डी. राममूर्ति व डॉ. चित्रा राममूर्ति रहीं। उद्घाटन मुख्य अतिथि रहे न्यायमूर्ति आरडी खरे ने किया। अध्यक्षता कर रहे मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. एसपी सिंह ने अतिथियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। विभागाध्यक्ष प्रो. कमलजीत सिंह ने सभी के प्रति आभार जताया। संचालन प्रो.अपराजिता चौधरी व डॉ. जागृति राना ने किया।

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पांच लाख को है पुतली का इंतजार

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एम्स नई दिल्ली से आए नेत्र रोग विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ.जीवन सिंह तितियाल ने बताया कि भारत में करीब पांच लाख लोग आंख की पुतली लगवाने के लिए इंतजार कर रहे हैं। हमारे यहां जागरूकता की कमी के चलते लोग नेत्रदान नहीं करते। हमने नई विधा की खोज किया है जिसमें एक पुतली से तीन लोगों को राहत दी जा सकती है। इसमें पुतली की एक परत को ही हम बदल देते हैं न कि सभी परत को। पहले एक पुतली सिर्फ एक को ही लगाई जा सकती थी। कम रोशनी वाले आंख का इलाज संभव

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मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज नई दिल्ली के डायरेक्टर प्रो. डॉ. सुभाष डाडिया कहते हैं कि अधिकतर लोगों में देखा जाता है कि एक आंख में कम रोशनी होती है। इसका इलाज संभव है और आसान भी। यदि यह बीमारी छह वर्ष से कम आयु में ही पहचान में आ जाए तो इसका इलाज शत प्रतिशत संभव है। इसके लिए उस आंख पर पट्टी बांध देते हैं जिसकी रोशनी ठीक है और उस आंख को हमेशा खुला रखते हैं जिससे कम दिखाई देती है। ऐसे में बच्चा उस आंख से टीबी आदि देख सकता है। हमारा मानना है कि सरकार को यह नियम सभी स्कूलों में अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए जिसमें एडमिशन के समय बच्चों की आंख का टेस्ट अवश्य कराया जाए।


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