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इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से शह और मात के बादशाह बने थे मैनुअल आरों, अर्जुन पुरस्कार हासिल करने वाले पहले शतरंज खिलाड़ी

मैनुअल आरों का जन्म 30 दिसंबर 1935 को म्यांमार में हुआ था। पिता बीआर आरों और मां पुष्पम के साथ जीवन के कुछ साल उन्होंने संगमनगरी में भी गुजारे हैैं। पिता शुआट्स में कैफेटेरिया मैनेजर थे। आरों ने बताया कि वह तमिलनाडु में पले-बढ़े और वहीं प्रारंभिक शिक्षा पूरी की

By Ankur TripathiEdited By: Published: Wed, 30 Dec 2020 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 30 Dec 2020 06:00 AM (IST)
इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से शह और मात के बादशाह बने थे मैनुअल आरों, अर्जुन पुरस्कार हासिल करने वाले पहले शतरंज खिलाड़ी
नवाबों के खेल शतरंज को संगमनगरी में जीवंत करने वाले मैनुअल आरों आज भी सक्रिय हैैं पूरे दम खम से।

प्रयागराज, गुरुदीप त्रिपाठी नवाबों के खेल शतरंज को संगमनगरी में जीवंत करने वाले मैनुअल आरों आज भी सक्रिय हैैं पूरे दम खम से। छह दशक पहले पहली बार इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के संघटक कालेज इविंग क्रिश्चियन कॉलेज (ईसीसी) में उन्होंने हाथी, घोड़े, वजीर और ऊंट की सफेद गोटियों वाली सेना को

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इस तरह नियंत्रित किया कि कुछ ही चालों में विपक्षी उखड़ गए।

इविवि से बीएससी की पढ़ाई के दौरान बहन से सीखी थी चाल

मैनुअल आरों का जन्म 30 दिसंबर 1935 को बर्मा (वर्तमान म्यांमार) में हुआ था। पिता बीआर आरों और मां पुष्पम के साथ जीवन के कुछ साल उन्होंने संगमनगरी में भी गुजारे हैैं। पिता शुआट्स में कैफेटेरिया मैनेजर थे। दैनिक जागरण से टेलीफोनिक बातचीत में आरों ने बताया कि वह तमिलनाडु में पले-बढ़े और वहीं प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। साठ के दशक में परिवार प्रयागराज में रहने लगा तो वर्ष 1955 में ईसीसी से फिजिक्स, केमेस्ट्री और मैथ बीएससी की उपाधि ली। महज छह वर्ष की उम्र में उन्होंने शतरंज की चाल घर से सीखी। बहन बड़ी फिलीशिया ने बारीकी सिखाई। उन्होंने पहला शतरंज मुकाबला ईसीसी में ही खेला। इविवि के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी और जिला शतरंज स्पोट्र्स एसोसिएशन के सचिव आशीष कुमार द्विवेदी बताते हैं कि  शतरंज के खेल में भारत को साठ के दशक में पहचान मिली। आरों ने न केवल भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि देश में भी इस खेल को मशहूर किया।

दुनिया के दिग्गजों संग खेले 

1962 में अर्जुन पुरस्कार हासिल करने वाले पहले शतरंज खिलाड़ी

1960 से 1970 तक भारत में शतरंज के बादशाह मैनुअल आरों ही रहे। 1962 में स्टाकहोम इंटर जोनल के लिए क्वालीफाई किया। वहां लाजोस पोर्टिश, वोल्फगैंग अलमैन जैसे बड़े-बड़े ग्रैंडमास्टर से मुकाबला हुआ। वह 1962 में अर्जुन पुरस्कार पाने वाले देश के प्रथम शतरंज खिलाड़ी बने। आरों ने बताया कि वह नौ बार राष्ट्रीय शतरंज चैैंपियन रहे हैैं। वर्ष 1969 से 1973 तक लगातार पांच वर्षों तक राष्ट्रीय खिताब उनके नाम रहा। तमिलनाडु में 11 बार राज्यस्तरीय चैंपियनपशिप जीती। वर्ष 1961 में एशियाई-ऑस्ट्रेलिया जोनल फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के सीजेएस पर्डी को 3-0 से हराया और वेस्ट एशियाई जोनल में मंगोलिया के सुकेन मोमो को 3-1 से शिकस्त दी। इसके बाद वह इंटरनेशनल मास्टर बन गए। 

भारतीय टीम का किया था नेतृत्व

आरों के नेतृत्व में भारतीय टीम ने कई बड़े मुकाबलों में प्रतिभाग किया। जर्मनी में 1960 के शतरंज ओलंपियाड और 1962 के बुल्गारिया गई भारतीय टीम की आरों ने कप्तानी की। आरों ने 1964 में तेल अवीव शतरंज ओलंपियाड में भाग लिया। तमिलनाडु चेस एसोसिएशन में बतौर सेक्रेटरी सेवाएं दीं और ऑल इंडिया चेस फेडरेशन के चेयरमैन भी रहे। इस वक्त वह चेन्नई में ही आरों चेस एकेडमी का संचालन कर युवाओं को शतरंज की चाल ऑनलाइन सिखा रहे हैं। कहते हैं यदि इविवि प्रशासन उनसे संपर्क करेगा तो पुरा छात्र होने के नाते जितना संभव होगा, मदद करेंगे।


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