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नेपाल तक है होती है तेंदुए के खाल की तस्करी, जानें कैसे

तेंदुए के खाल के साथ नाखून, दांत, जबड़े की मुंहमांगी कीमत मिलती है। इसलिए नेपाल तक तस्‍करी की जाती है। तस्‍कर पैसे के लिए इस वन्‍य प्राणी को मारने से बाज नहीं आ रहे हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 09:41 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 10:50 AM (IST)
नेपाल तक है होती है तेंदुए के खाल की तस्करी, जानें कैसे

प्रयागराज : वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत संरक्षित होने के बाद भी तेंदुए नहीं बच पा रहे हैं। यूपी के कई जिलों के बाद प्रतापगढ़ में भी इसकी जान सांसत में है। जिस तरह से इसे मारा जा रहा है, उससे तस्करी की भी आशंका को बल मिल रहा है।

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तेंदुए की खाल, दांत, जबड़े, नाखून की मुंहमांगी कीमत मिलती है

कौशांबी की तराई से बकुलाही नदी का किनारा पकड़कर बेल्हा में आ रहे तेंदुए अपनी जान गवां रहे हैं। दो तेंदुए तो गांव वालों की मौजूदगी व नासमझी में मारे जाने से हाईलाइट हो गए, पर तस्करों ने भी ऐसे कांड किए होंगे। इसकी भनक न तो पुलिस को है न वन विभाग को। दरअसल तेंदुए की खाल, दांत, जबड़े, नाखून सब की नेपाल समेत कई देशों व भारत के कई प्रदेशों में मुहमांगी कीमत मिलती है। नेपाल जाने के लिए तो वीजा का भी झमेला नहीं है, जिससे तस्कर बड़े आराम से लगेज के रूप में इसके अंगों को वहां ले जाकर बेचते हैं।

तस्करी पर बद देता है पेशेवर शिकारियों से तेंदुए को पकडऩा

प्रतापगढ़ में मानधाता के कुशफरा में नया मामला आया है उसमें पेशेवर शिकारियों को बुलाकर तेंदुए को पकड़वाना तस्करी की ओर मजबूत इशारा करता है। वन विभाग की खुफिया इकाई इस दिशा में भी माथा-पच्ची कर रही है। वन संरक्षक प्रयागराज डॉ. राजीव भी इसे जांच का अहम ङ्क्षबदु मानते हैं। प्रतापगढ़ से महज 100 किमी दूर फतेहपुर जिले में तेंदुए की तस्करी के इंटरनेशनल गिरोह के सदस्य अमीन अहमद व वकील अहमद बीते दिनों पकड़े भी जा चुके हैं।

पौरुष बढ़ाने की दवा में भी काम आती है तेंदुए की खाल

तेंदुए की खाल का मुख्य उपयोग पौरुष बढ़ाने वाली दवा बनाने में होता है। एक टिकिया का हजारों में होता है दाम। 14 साल के तेंदुए की खाल तस्कर करीब 50 हजार रुपये में बेचते हैं। प्रतापगढ़ में पकड़े गए जसवंत के तार तस्करों के गिरोह से जुड़े हो सकते हैं इस बारे में पड़ताल की जा रही है। इससे यह भी पता चला है कि कौशांबी व फतेहपुर में जंगल लगातार कट रहे हैं, जिससे तेंदुए समेत जानवरों का प्राकृतिक आवास कम हो रहा है। वह ऐसे ही आवास की तलाश में कूदते-फांदते प्रतापगढ़ आ जाते हैं। खास बात यह भी है कि अब तक सभी तेंदुए एक ही क्षेत्र में मिले हैं।


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