Kumbh mela 2018 : जागती ही नहीं जागृत भी करती है कुंभनगरी, जानें कैसे
कुंभ नगर इन दिनों लोगों के आकर्षण का केंद्र है। क्या दिन और क्या रात, हमेशा जागती है और दूसरों को जागृत भी कर रही है।
गुरुदीप त्रिपाठी, कुंभनगर : मुंबई से आये युवाओं का एक जत्था संगम की जगमग से चमत्कृत है। उनकी बातें ध्यान खींचती हैं। अरे, इसके आगे तो चौपाटी कहीं ठहरता ही नहीं। दूसरा जवाब देता है, यही कुंभ है। मैं 2013 में भी आया था। संगम रातभर जागता है। उनकी बातें शायद सही हैं। मुंबई रातभर जागती है, लेकिन जागृत नहीं करती, कुंभ जागृत करता है।
यहां रात में भी होता है संगम स्नान
रात के 11 बजे हैं। संगम पर अभी भी कुछ लोग स्नान कर रहे हैं। एक तीर्थ पुरोहित मुंबई के लोगों को समझाने लगता है। यहां का वातावरण लोगों को काम, क्रोध, मद, लोभ से जगाता है। यहां आध्यात्मिक चेतना की गंगा तो बह ही रही है, विभिन्न संस्कृतियों का मिलन भी हो रहा है। लोगों का सेवाभाव देखिए। हर कदम पर भंडारा चल रहा है और लोग खाना खिलाने को आतुर हैं। पुरोहित जजमान का नाम पूछता है, वह बताता है राजेश पंवार, फिर कुछ मंत्रों का जाप करते हुए टीका लगा देता है। उसके पीछे कई और लोग टीका की तैयारी करने लगते हैं।
...और बढऩे लगा कोहरा
कोहरा बढ़ रहा है लेकिन जाने-कितने आध्यात्मिक जिजीविषा को शांत करने चलने आ रहे हैं। आज ही पौष पूर्णिमा का स्नान है। इसके लिए घाट पर रात में भी काम चल रहा है। वैसे तो अमूमन आम दिनों सूरज ढलते ही यहां सन्नाटा पसर जाता है, लेकिन रात के 12 बजे भी कलकल करतीं नदियों में हर कोई गोता लगाने को बेताब दिख रहा है। इतना ही नहीं रात में भी अमृतवर्षा की गूंज सुनाई पड़ रही है। रामलीला और रासलीला के पंडालों में रात को भी दिन जैसी भीड़। शांतिपूर्वक घाटों के किनारे बैठकर भगवान का स्मरण करते श्रद्धालु।
व्यापार इस लोक और डुबकी परलोक के लिए
संगम तट पर ही मुलाकात होती है मेजा के 15 वर्षीय अरुण और उनके पड़ोसी 12 वर्षीय शनि से। ये आए तो हैं कुंभ नगरी में भगवान के श्रृंगार का सामान बेचने लेकिन आध्यात्मिक नगरी में वह अपना मन ही हार बैठे। दोनों में आस्था की ऐसी ललक जगी कि वे दिनभर तो व्यापार करते हैं और सुबह-शाम त्रिवेणी में डुबकी लगाकर पुण्य कमा रहे हैं। पूछने पर बड़ी ही बेबाकी से कहते हैं भैया, व्यापार इस लोक की जरूरत है और डुबकी परलोक के लिए।
आस्था ऐसी कि ठंड का असर नहीं
किशोरों में आस्था ऐसी कि उन पर ठंड का भी कोई असर नहीं पड़ता। शनि ने बताया कि उनके पिता नौकरी के सिलसिले में बाहर रहते हैं। घर पर केवल मां और छोटा भाई रहता है। कुंभ मेले का आकर्षण उन्हें कुछ इस कदर भा गया कि एक महीने के लिए स्कूल से छुट्टी भी ले ली। इसके बाद वह त्रिवेणी के तट पर बसे तंबुओं की नगरी में पहुंच गए। शनि ने बताया कि भोर में उठते ही इनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। दिनभर घाटों के किनारे डलिया लेकर फूल, अगरबत्ती और दूध आदि बेचते हैं।
नई कार को गंगा मइया का दर्शन
रात के 12 बजकर 40 मिनट हो चुके हैं। संगम तट पर लोगों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है। इसी बीच एक चमचमाती हुई नई कार पहुंचती है। कार से उतरते हैं कानपुर के विनय रस्तोगी। वह बोल पड़े जय हो गंगा मइया की...। इसके बाद वह हंसते हुए परिजनों से बोल पड़े, लो भाई परिवार के नए सदस्य ने भी कुंभ के दौरान गंगा मइया का दर्शन कर लिया। इसके बाद वह कार पर गंगाजल छिड़कते हैं। फिर कार के बोनट पर केक काटकर एक-दूसरे को खिलाते हैं। कुछ देर तक फोटो खिंचवाने के बाद वह चल पड़ते हैं मेला का भ्रमण करने।