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जानिए कौन हैं वैज्ञानिक डा. अजय जिन्‍हें पद्मश्री सम्मान मिला, कृ‍त्रिम मोती उगाकर उपलब्धि हासिल की

प्रयागराज के कटरा मुहल्ले में साधारण परिवार में जन्में डा. अजय परिवार सहित अब नैनी में रहते हैं। उन्‍होंने अपने आवास में ही तालाब व प्रयोगशाला को अत्याधुनिक तरीके से विकसित कर रखा है। बताया कि उन्हें अब तक कई बड़े और राष्ट्रीय स्तर के सम्मान मिल चुके हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 10:30 AM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 10:30 AM (IST)
जानिए कौन हैं वैज्ञानिक डा. अजय जिन्‍हें पद्मश्री सम्मान मिला, कृ‍त्रिम मोती उगाकर उपलब्धि हासिल की
राष्‍ट्रपति से सम्‍मानित हो चुके प्रयागराज के डा. अजय कुमार सोनकर को पद्मश्री सममान मिला है।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। कृत्रिम रूप से मोती उगाकर दुनिया भर में नाम रोशन कर चुके डा. अजय कुमार सोनकर को पद्मश्री सम्मान मिलना प्रयागराज के लिए बड़ी उपलब्धि है। काले मोती ने एक्वाकल्चरल वैज्ञानिक डा. अजय कुमार के सपनों को जैसे पंख लगा दिए। मोती उगाने के मामले में वे दुनिया में जापानी वर्चस्व को भी चुनौती दे चुके हैं। जब उन्हें पद्मश्री सम्मान मिलने की बात पता चली तो फूले नहीं समाए। उन्होंने इसके लिए भारत सरकार, प्रयागराज से मिले प्यार और सहयोग तथा लैब में अपनी टीम का शुक्रिया अदा किया।

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प्रयागराज के डा. अजय का तालाब व प्रयोगशाला है अत्‍याधुनिक

कटरा मुहल्ले में एक साधारण परिवार में जन्में डा. अजय परिवार सहित अब नैनी में रहते हैं और अपने आवास में ही तालाब व प्रयोगशाला को अत्याधुनिक तरीके से विकसित कर रखा है। बताया कि उन्हें अब तक कई बड़े और राष्ट्रीय स्तर के सम्मान मिल चुके हैं लेकिन उन्होंने कभी इसके लिए स्वयं आवेदन नहीं किया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्‍द भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।

होनोलुलु में अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति मिली

दैनिक जागरण से हुई बातचीत में उन्‍होंने बताया कि समुद्र के खारे पानी की बजाए सामान्य स्वाद वाले पानी में 1991 में जब उन्होंने सीप से मोती उगाने की तकनीक शुरू की थी तब यह गतिविधि भारत में पहली बार मानी गई थी। 1994 में उन्हें अमेरिका के होनोलुलु में एक सेमिनार में आमंत्रित किया गया था। तब उनकी उम्र महज 17 वर्ष थी। वहीं से उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली।

काले मोतियों ने दिलाई पहचान

डा. अजय सोनकर कहते हैं कि उनके द्वारा उगाए जाने वाले काले मोतियों ने दुनिया भर में जबर्दस्त पहचान दिलाई है। अंडमान निकोबार की सरकार उनसे मोती खरीद लेती है फिर अपने इम्पोरियम में लगाकर लाखों रुपये में बेचती है।

डा. अजय ऐसे उगाते हैं मोती

डा. अजय सोनकर बताते हैं कि समुद्री पानी में पाए जाने वाले सीप में जीव सांस लेने के लिए जब मुंह खोलते हैं तो कभी-कभी बाहर की कोई चीज उनके अंदर चली जाती है। जीव पहले तो उसको शरीर से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब कामयाब नहीं होते तो अपनी तकलीफ़ को कम करने के लिए शरीर से एक खास तरह का रसायन उस पर छोड़ते हैं। रसायन के प्रभाव से यह वह चीज समय के साथ मोती बन जाता है। हालांकि प्राकृतिक तौर पर मोती का बनना दस लाख सीप में से एक में हो पाता है। हालांकि कृत्रिम मोती उगाने की तकनीक ने मोतियों की दुनिया को काफी बदला है और अजय सोनकर का काम उसी दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।

बनना चाहते थे इंजीनियर

भौतिकी, रसायन और गणित पढऩे वाले अजय सोनकर इंजीनियर बनना चाहते थे। उन्होंने वारंगल रीजनल इंजीनियरिंग कालेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी की, लेकिन उन्हीं दिनों दूरदर्शन पर दोपहर में आने वाले यूजीसी के शैक्षणिक कार्यक्रम पर आधारित टीवी शो के एक धारावाहिक में प्रसारित एक स्टोरी ने उनके जीवन को बदल दिया। डा. अजय की प्राथमिक शिक्षा प्रयागराज के केपी इंटर कालेज में पूरी हुई।


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