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पैर में लोहे का कड़ा और पक्कों से पिटाई, जानिए किस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने लिखी है जेल में यातना की दास्तां

नृपेंद्र सिंह बताते हैं कि सैयद मुजफ्फर हसन दिसंबर 1921 में असहयोग आंदोलन में पहली बार गिरफ्तार हुए थे। उन्हें पहले कर्नलगंज थाने की हवालात में रखा गया। फिर प्रयागराज की मलाका स्थित जिला जेल भेज दिया गया। तीन माह बाद उनका तबादला फैजाबाद जेल कर दिया गया।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 04 Mar 2021 11:00 AM (IST)Updated: Thu, 04 Mar 2021 11:00 AM (IST)
मुजफ्फर हसन ने अपनी आत्मकथा में जेल के नारकीय जीवन का विस्तार से वर्णन किया है।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज आजादी के आंदोलन में अग्रणी रहा है। सैयद मुजफ्फर हसन इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से थे जिन्होंने 1920 से 1947 तक के सभी आंदोलनों में भाग लिया और परीक्षा की कसौटी पर हमेशा खरे साबित हुए। उन्होंने लंबे समय तक जवाहरलाल नेहरू के साथ काम किया। पर राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, रफी अहमद किदवई, चंद्रभानु गुप्त तथा सालिकराम जायसवाल के अधिक करीब रहे। आजादी के बाद उन्होंने गिरते नैतिक मूल्यों तथा अवसरवादी राजनीति का दौर देखा किंतु वे उसमें शरीक नहीं हुए। मुजफ्फर हसन ने अपनी आत्मकथा में जेल के नारकीय जीवन का विस्तार से वर्णन किया है।

17 वर्ष की उम्र में होमरूल लीग से जुड़े
इतिहासकार नृपेंद्र सिंह बताते हैं कि सैयद मुजफ्फर हसन का जन्म प्रयागराज में 22 जुलाई 1902 को हुआ था। उनके पिता का नाम सैयद मजहर हसन था। वे शाह अब्दुल लतीफ के वंशज थे। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा घर पर और बाद में मदरसे में हासिल किया। उन्होंने केवल 17 वर्ष की अवस्था में ऐनीबेसेंट की होमरूल लीग के स्वयंसेवक का काम किया। उस समय सिटी रोड पर होमरूल लीग का कार्यालय था और मंजर अली सोख्ता उसके सेकेट्ररी थे।

असहयोग आंदोलन में पहली बार हुए गिरफ्तार
नृपेंद्र सिंह बताते हैं कि सैयद मुजफ्फर हसन दिसंबर 1921 में असहयोग आंदोलन में पहली बार गिरफ्तार हुए थे। उन्हें पहले कर्नलगंज थाने की हवालात में रखा गया। फिर प्रयागराज की मलाका स्थित जिला जेल भेज दिया गया। तीन माह बाद उनका तबादला फैजाबाद जेल कर दिया गया।

लिखी आपबीती सियासी जिंदगी आत्मकथा
नृपेंद्र सिंह बताते हैं कि मुजफ्फर हसन ने अपनी आत्मकथा 'आपबीती सियासी जिंदगी मेंं जेल के नारकीय जीवन का विस्तार से वर्णन किया है। उन्हें जेल में टाट के कपड़े पहनने तथा बेंत की सजा के अलावा सभी दंड दिए गए। तनहाई की कोठरी, खड़ी हथकड़ी, रात की हथकड़ी, डंडा बेड़ी, मूंज की रस्सी बिनना, पैर में लोहे का कड़ा, गले में लोहे हंसुली, पक्कों से पिटाई आदि सभी तरह की सजाएं मिलीं किंतु जेल प्रशासन उनके बुलंद हौसले को कम नहीं कर सका। उन्हें 18 अगस्त 1922 को जेल से छोड़ा गया। हालांकि उन्हें 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में पीडी पार्क में केशवदेव मालवीय के साथ फिर  पकड़ा गया था। इस बार उन्हें नैनी जेल में रखा गया था। उस समय नैनी जेल में मंजर अली सोख्ता, सुंदरलाल, अनादि कुमार दत्त तथा फिरोज गांधी भी बंद थे।

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