दल तो मिले पर नहीं मिला केशरी-रेखा का दिल
जिला पंचायत अध्यक्ष रेखा सिंह व पूर्व अध्यक्ष केशेरी देवी पटेल का भाजपा में रहकर भी सियासी प्रतिद्वंदिता जारी है। वर्तमान अध्यक्ष के खिलाफ पूर्व अध्यक्ष द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव दोनों की टकराव को बयां करते हैं।
प्रयागराज : 1998 से अब तक जिला पंचायत में एक दूसरे की धुर विरोधी रहीं रेखा सिंह और केशरी देवी दोनों ने ही वर्ष 2017 में भाजपा ज्वाइन कर ली। इसके साथ ही यह माना जाने लगा कि दोनों के शायद अब दिल भी मिल जाएं, लेकिन नतीजा माफिक नहीं निकला। उल्टा इन दोनों के चक्कर में भाजपा की किरकिरी जरूर हो रही है।
जिला पंचायत अध्यक्ष रेखा सिंह ने तो कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के जरिए भाजपा में इंट्री की। उन्हें राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने पार्टी की सदस्यता दिलाई। उधर, केशरी देवी और उनके बेटे पूर्व विधायक दीपक पटेल ने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के जरिए भाजपा में प्रवेश किया। अब जब दोनों के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हुई तो भाजपा बनाम भाजपा हो गई। इस लड़ाई में पार्टी की फजीहत हो रही है, इसकी चिंता वरिष्ठ नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक रही। फिर भी इनके पीछे से भाजपा के दो गुट अपने वर्चस्व की जंग भी लड़ रहे थे। इसलिए दोनों के विवाद में कहीं समझौता कराने का प्रयास भी नहीं हुआ। इसलिए विश्वासमत पर मतदान की नौबत आई। फिर अब चुनाव की देहरी पर मुकाबला एक बार फिर घमासान होने के आसार हैं।
जिंदाबाद के नारों ने जताई भाजपा की खेमेबंदी :
जिला पंचायत के बाहर सैकड़ों की भीड़ ने अविश्वास प्रस्ताव के पारित होते ही जिंदाबाद के नारे लगाए जो बेहद सामान्य सी बात है, फिर भी इसमें भाजपा की गुटबाजी साफ हो गई। ऐसा करने वाले सिर्फ उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य से लेकर उन विधायकों के ही नारे लगा रहे थे, जो खुलकर केशरीदेवी के साथ थे। इस बीच एक बाद उदयभान करवरिया के नाम का भी नारा लगा, लेकिन तत्काल नारे बदल गए। इसके अलावा जिले के तीन और कैबिनेट मंत्रियों का नाम इन नारों में कहीं शामिल नजर नहीं आया। यहां तक कि मुख्यमंत्री के नारे भी नहीं लगे।
केशरी का दावा भी निकला कमजोर :
अविश्वास प्रस्ताव पेश करते समय केशरीदेवी ने 64 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला पत्र डीएम को सौंपा था। दावा था कि 64 सदस्य उनके साथ हैं, लेकिन यह दावा फेल हो गया। मुकाबला अंत तक बेहद करीबी हो गया। उनके साथ उनके अलावा केवल 48 सदस्य ही पहुंचे। वोट डालने वालों में से एक ने दोनों विकल्पों पर निशान लगाकर जिस तरह अपना वोट निरस्त कराया। वह भी इस खेमे के लिए चिंता का विषय हो सकता है। ऐसे में इस जिला पंचायत की जंग को अभी एकतरफा कहना उचित नहीं होगा।