Kargil Vijay Diwas : जब जवानों संग अटल ने कारगिल पर लगाई थी ललकार Prayagraj News
आपरेशन कारगिल में शामिल रहे श्रवण पाल बताते हैं कि कारगिल फतह करने की लड़ाई चल रही थी और एक दिन अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी सीमा पर जवानों के बीच आ गए।
प्रतापगढ़,[ आशुतोष तिवारी ]। कारगिल युद्ध का हर एक संस्मरण रोमांचक व हमारे वीर सपूतों की शौर्य गाथाओं से भरा है। देश की रक्षा के लिए जान देने का जज्बा भारतीय सैनिकों में कूट-कूटकर भरा होता है और युद्घ को जीतने के लिए हथियारों से ज्यादा जरूरी यही अदम्य साहस होता है। इसी साहस को सीमा पर अचानक से देश के प्रधानमंत्री का साथ मिल जाय तो दुनिया की कोई ताकत हमारे सैनिकों से मुकबला नहीं कर सकतीं।
अचानक सैनिकों के बीच पहुंच गए थे तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी
दरअसल, धोखे से हमारे देश की सीमा में घुसे पाकिस्तानी सैनिकों से कारगिल में करीब 60 दिन युद्ध चला। पाकिस्तानी सैनिक पहाड़ी पर ऊपर की ओर थे और हमारे जांबाज नीचे की ओर, इसलिए खतरा हमारे लिए अधिक था। दिन-रात निरंतर जागते रहने और जान हथेली पर लेकर कारगिल की चोटी को फतह करने का गौरव भुलाए नहीं भूलता। आपरेशन कारगिल में शामिल रहे श्रवण पाल बताते हैं कि कारगिल फतह करने की लड़ाई चल रही थी और एक दिन अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी सीमा पर जवानों के बीच आ गए। पाकिस्तान की तरफ से उस समय रह-रह कर गोले दागे जा रहे थे। अटल जी ने अचरज भरी निगाहों से हम लोगों को देखा और बोले, अरे उधर से गोले दागे जा रहे और तुम लोग चुप हो, हमारा जवाब था कि अभी ऊपर से आर्डर नहीं आया है।
पीएम की ललकार के साथ सैनिकों का उत्साह हुआ दोगुना, कांप गया पाकिस्तान
उन्होंने पाकिस्तान की तरफ हाथ उठाकर ललकारा और कहा मारो तुम लोग भी। उनके जय हिंद के नारे के साथ ही सैनिकों में जबरदस्त उत्साह आ गया और फिर गोलों के धमाकों से पाकिस्तान का जर्रा-जर्रा कांप उठा था। कुछ ही देर में उधर से मरघट सा सन्नाटा छा गया। उनके चेहरे पर तैरती विजयी मुस्कान आज भी हम नहीं भूल पाए हैं। यह हम सैनिकों के लिए पहला मौका था, जब देश का कोई प्रधानमंत्री युद्ध के समय जवानों के बीच डटकर खड़ा हो गया था। दैनिक जागरण से यह संस्मरण सुनाते-सुनाते कारगिल के युद्ध में शामिल रहे पूर्व सैनिक सदर ब्लाक क्षेत्र के पूरे ईश्वरनाथ गांव के रहने वाले श्रवण पाल का गला रुंध जाता है और अटल जी के सम्मान में वह सैल्युट करते हैं।
कारगिल पर आक्सीजन कम, पड़ जाता है शरीर काला
जिस कारगिल की पहाड़ी पर लड़ाई चल रही थी, इतनी उंचाई पर आक्सीजन कम रहती है। वहां की बर्फीली हवाओं से शरीर काला पड़ जाता है। यह खड़ी पहाड़ी वाला क्षेत्र है, जहां पर चढऩा और वहां टिके रहना चुनौती भरा था। वहां पर चौबीस घंटे दुश्मन से सामना करना था। हमने उस चुनौती को ना सिर्फ झेला, बल्कि विपरीत परिस्थिति में भी हमनें पाकिस्तानियों का सीना चाक करके कारगिल की चोटी पर कब्जा कर लिया। मेरा काम था जंगल में गुप्त आयुध भंडार से गोला-बारूद लेकर कारगिल तक पहुंचाना।