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सुखद स्मृतियों संग संगम तीरे से विदा हुए कल्पवासी

कुंभ मेला में माघी पूर्णिमा के स्‍नान पर्व के साथ ही कल्‍पवासियों का वापस जाना भी शुरू हो गया है। कुछ संत महाशिवरात्रि तक संगम क्षेत्र में प्रवास करेंगे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 09:24 PM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 11:03 AM (IST)
सुखद स्मृतियों संग संगम तीरे से विदा हुए कल्पवासी

कुंभनगर : जन्म-जन्मांतार के पापों से मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति की संकल्पना को साकार करने के लिए संगम की रेती पर चल रही अखंड तपस्या कल्पवास का माघी पूॢणमा स्नान पर्व के साथ समापन हो गया। माघ मास में घर-परिवार से दूर रहकर भजन-पूजन में लीन कल्पवासी गंगा व संगम में डुबकी लगाने के बाद पूर्वजों को नमन करके पुन: लौटने लगे। प्रयाग से अपने साथ ले गए तो मेला क्षेत्र के बिताए आध्यात्मिक पल की स्मृतियां, संस्कार और संतों से मिला ज्ञान। कल्पवासी अगले वर्ष माघ मास में पुन: प्रयाग आकर भजन-पूजन करेंगे।

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पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक का सफर हुआ पूरा

प्रयाग में कल्पवास की प्राचीन परंपरा है। संतों के साथ गृहस्थ लोग भजन-पूजन करने आते हैं। पौष पूॢणमा से आरंभ हुआ कल्पवास माघी पूॢणमा पर समाप्त हो गया। कल्पवासी मंगलवार की भोर से स्नान करने लगे। संगम के अलावा गंगा में डुबकी लगाकर अपने शिविर आकर तीर्थ पुरोहितों के मंत्रोच्चार के बीच पूजन कर पूर्वजों एवं समस्त देवी-देवताओं को नमन करके उनका आशीष मांगा। इसके बाद अपने-अपने घर की ओर रुख करने लगे। वहीं संत भी स्नान करके आश्रम की ओर लौटने लगे। जबकि कुछ संत महाशिवरात्रि तक प्रयाग में प्रवास करके भजन-पूजन करेंगे। वह महाशिवरात्रि पर संगम का स्नान करने के बाद लौटेंगे।

साथ ले गए जौ और तुलसी का पौधा

प्रयाग से कल्पवासी प्रसाद स्वरूप जौ और तुलसी का पौधा साथ ले गए। जौ के पौधे को वह अपने घर में पूजन स्थल एवं तिजोरी में रखेंगे। कल्पवास आरंभ करने पर उन्होंने शिविर के बाहर जौ बोकर तुलसी का पौधा रोपा था। प्रतिदिन सुबह व शाम उसका पूजन करते करते रहे। कल्पवास पूर्ण होने पर ईश्वर के प्रसाद स्वरूप उसे लेकर गए।

विदाई की बेला में नम हुईं आंखें

माह भर साथ रहकर भजन-पूजन करने वाले कल्पवासियों की विदाई की बेला आई तो वह भावुक हो गए। एक-दूसरे के गले लगे तो आंखें नम हो गईं। मोबाइल नंबरों का आदान-प्रदान कर सुख-दुख में साथ निभाने की शपथ भी ली।

भद्रा खत्म होने की हुई प्रतीक्षा

दरअसल, मंगलवार सुबह 10.38 बजे तक भद्रा का प्रभाव था। इसके चलते कल्पवासी व संत-महात्माओं ने भद्रा के खत्म होने की प्रतिक्षा की, क्योंकि भद्राकाल में तीर्थस्थल छोडऩे में पाबंदी है। भद्रा खत्म होने के बाद सामान समेटकर अपने-अपने ठौर को लौटने लगे।


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