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Allahabad University के ताराचंद हास्टल के दैनिक वेतनभोगी कर्मियों को नौकरी से निकाला गया, आक्रोश

छात्रनेता अजित प्रताप सिंह ने फेसबुक पर पोस्‍ट किया...ऐतिहासिक व्यक्ति के नाम से बना हास्टल आज एक अलग इतिहास बनाने के रास्ते पर खड़ा हुआ है। कारण ये है कि वहां लगभग 16 कर्मचारी कार्यरत हैं। सबके वेतन बंद हो गए हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Mon, 21 Jun 2021 11:54 AM (IST)Updated: Mon, 21 Jun 2021 11:54 AM (IST)
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ताराचंद हास्टल के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के ताराचंद हास्टल में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। कोरोना वायरस संक्रमण काल में रोजगार छिनने से कर्मचारी काफी परेशान हैं। अब इविवि के पुरा छात्र अजित प्रताप सिंह ने इन कर्मचारियों के लिए मुहिम छेड़ दी है। उन्होंने बाकायदा अपने फेसबुक पर पोस्ट भी किया है।

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छात्रनेता अजित की पोस्ट आप भी पढि़ए

छात्रनेता अजित प्रताप सिंह ने फेसबुक पर पोस्‍ट किया...इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध इतिहास कार डाक्टर ताराचंद के नाम से एक हास्टल बना है। लोग उसको टीसी हस्टल भी बोलते हैं। मैं भी पढ़ते समय ताराचंद छात्रावास में रहा करता था। ऐतिहासिक व्यक्ति के नाम से बना हास्टल आज एक अलग इतिहास बनाने के रास्ते पर खड़ा हुआ है। कारण ये है कि वहां लगभग 16 कर्मचारी कार्यरत हैं। सबके वेतन बंद हो गए हैं। अब कहा जा रहा है कि आप लोग काम बंद कर दीजिए वेतन नहीं है। पता चला कि वंहा के कर्मचारियों को दैनिक मानदेय पे रखा गया था। जब कोर्ट ने वेतन देने को कहा तो विश्वविद्यालय ने यह निर्णय लिया था कि हास्टल के फंड, जो प्रवेश आदि से मिलता है उससे दिया जाएगा और वही मिलता भी रहा था।

अब कोरोना का दिया जा रहा हवाला

छात्रनेता ने लिखा कि विगत वर्ष से कोरोना आ गया। प्रवेश बंद है। लड़कों की फीस नहीं आ रही, जिसके कारण कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया गया 6 से 8 महीने तक का। उसके बाद भी कर्मचारी कर्ज लेकर परिवार चलाते रहे और होस्टल में आते रहे, दो दिन पहले पता चला कि उनको बता दिया गया कि अब वेतन का पैसा नहीं है, आप लोग काम बंद कर दीजिए। अब आप बताइए जो कर्मचारी पिछले 25 साल से लगातार वंहा काम कर रहे थे। अचानक कंहा जाय, क्या करे? वही उनका घर था और वही रोजगार भी, जो भी मिलता था उसी से उनके पेट भी भरते थे और सपने भी पलते थे।

याद किए पुराने दिन

अजित लिखते हैं कि इन कर्मचारियों ने कितने बच्चो की सेवा करके, झाड़ू लगा के, उनके वर्तन साफ करके, उनके सपनों को पंख लगाया और बहुत से लोगों ने इतिहास बनाया, मुकाम हासिल किए। आज हम लोगों के सपनों को पंख लगाने में सहयोग करने वाले खुद अंधेरे में जा रहे हैं। महान ताराचंद की आत्मा भी ऐसे इतिहास को लिखने के लिए कलम नही उठा पाएगी कि उनके विश्वविद्यालय और उनके नाम के हास्टल के झाड़ू, पोछा करने वाले कर्मचारियों को सिर्फ इसलिए निकाल दिया जा रहा है कि पैसा नहीं है। ये नही रहेंगे तो काम कैसे होगा? हास्टल से दूसरा ताराचंद कैसे निकलेगा?

मदद के लिए लगाई गुहार

अजित ने लिखा है कि मेरा सभी सक्षम लोगों से अनुरोध है कि कर्मचारियों की पीड़ा को कुलपति महोदय तक पहुचाएं कोई निदान कराएं, हो ना पाये तो हम लोग होस्टल के जितने पूर्व के अंत:वासी हैं, इनकी मदद का अभियान चलाएं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सभी लोग एक, एक रुपये भी देंगे तो इनका परिवार बच जाएगा, इनको सिर्फ नौकरी से ही नहीं निकाला जा रहा है, पूरे परिवार के सपने को मारा जा रहा है। आइए 'मदद ताराचंद कर्मचारी' का अभियान चलाएं। अपने हास्टल के लोगो से निवेदन है कि वो जरूर आगे आये, इन सब का कर्ज है हम लोगो के ऊपर, उतारने का समय आ गया है।


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