Coronavirus effect : इतने में नहीं होगा गुजारा, परदेस ही सहारा Prayagraj News
होम क्वारंटाइन के बाद घर का खर्च चलाने के लिए राजमिस्त्रियों के साथ फावड़ा चला रहे हैं फिर भी रोज काम नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में घर का खर्च तक नहीं चल पा रहा है।
प्रयागराज, जेएनएन। साहब यहीं कुछ काम धंधा मिल जाए तो परिवार छोड़कर बाहर कौन जाना चाहता है, लेकिन यहां क्या काम करें। मजदूरी भी करना चाहते हैं तो एक दिन काम मिलता है तो दो दिन बैठना पड़ रहा है। ऐसे में परिवार का खर्च चलाना ही मुश्किल हो रहा है। बेटी की शादी व बूढ़े मां-बाप का इलाज, बच्चों की पढ़ाई, घर बनवाने के लिए पैसा कहां से आएगा। अपनी जान बचाने के लिए परिवार की जिंदगी को कैसे दांव पर लगा दूं। इसलिए मजबूरन फिर परदेस जाना ही पड़ेगा। यह कहना है हंडिया क्षेत्र के बिगहिया गांव लौटे प्रवासी कामगारों का। उनका कहना है कि कोरोना वायरस का कहर और लॉकडाउन खत्म होगा। वे परदेश जाएंगे।
पहले सोचा था नहीं जाएंगे अब, लेकिन जाना तो पडेगा
सैदाबाद विकास खंड के बिगहिया गांव निवासी अमृत लाल कनौजिया, राजू, अर्जुन, देवी लाल मुंबई में रहकर नौकरी करते थे। लॉकडाउन में कामकाज बंद होने पर सभी गांव आ गए हैं। उन्होंने बताया कि गांव चलते समय तो उन्होंने सोचा था कि अब घर में ही नून रोटी खाएंगे, परदेस नहीं आएंगे, लेकिन गांव में काम-धंधा न मिलने से एक-एक पैसे के लिए परेशान हो गए हैं। एक दिन काम मिलता है तो दो दिन बंद रहता है ऐसे में घर का खर्च ही बमुश्किल से चल पा रहा है। ऐसे में बच्चों की बीमारी व कच्चे घर को बनवाना, माता-पिता की दवाई आदि की व्यवस्था करने के लिए हम लोगों को फिर परदेस जाना पड़ेगा। इसी प्रकार गुजरात के सूरत शहर से व्यूर गांव आए सगे भाई इंद्रकांत और सूर्यकांत यादव का कहना है कि गुजरात के सूरत शहर में रहकर साड़ी की फैक्ट्री में सुपरवाइजर और डिजाइनर के पद पर काम करते थे। होम क्वारंटाइन के बाद घर का खर्च चलाने के लिए राजमिस्त्रियों के साथ फावड़ा चला रहे हैं, फिर भी रोज काम नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में घर का खर्च तक नहीं चल पा रहा है। उन्होने बताया कि अपने जीवन से ज्यादा जरूरी बड़ी हो रही बेटियों के हाथ पीले करना है। जिसके लिए पैसे की आवश्यकता पड़ेगी।
हंडिया क्षेत्र में नहीं हैं रोजगार के अवसर
गंगापार का हंडिया तहसील शिक्षा एवं इतिहास के अतीत से जुड़ा होने के बावजूद यहां रोजगारपरक व्यवस्था नहीं है। इसके चलते यहां के युवाओं को पढ़ाई पूरी करने के बाद विभिन्न राज्यों में जीविकोपार्जन के लिए जाना पड़ता है। इस क्षेत्र के अधिकतर युवा मुंबई, दिल्ली, मद्रास, अहमदाबाद, सूरत समेत अन्य प्रांतों में नौकरी करते हैं। क्षेत्र के अमोरा, सैदाबाद, बरौत, धनुपुर, प्रतापपुर, उग्रसेनपुर, वारी, मंड़ुवा, छिड़ी समेत विभिन्न गांवों के सैकड़ों प्रवासी कामगार घरों में होम क्वारंटाइन हैं। उनका कहना है कि परदेस में रहकर वह पांच सौ से एक हजार रुपये प्रतिदिन कमा लेते थे, लेकिन यहां कोई रोजगार नहीं होने के कारण भूखों मरने से अच्छा होगा कि हालात सामान्य होने पर परदेस जाकर फिर नौकरी करेंगे।