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कॉफी हाउस में साथियों संग डॉ. नामवर सिंह की होती थी साहित्यिक चर्चा

प्रख्‍यात आलोचक कवि व लेखक डॉक्‍टर नामवर सिंह को श्रद्धांजलि देने का क्रम जारी है। स्मृति शेष पर चर्चा करें तो नामवर शहर के कॉफी हाउस में साहित्यिक चर्चा साथियों के संग करते थे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Thu, 21 Feb 2019 08:46 PM (IST)Updated: Fri, 22 Feb 2019 07:25 AM (IST)
कॉफी हाउस में साथियों संग डॉ. नामवर सिंह की होती थी साहित्यिक चर्चा
कॉफी हाउस में साथियों संग डॉ. नामवर सिंह की होती थी साहित्यिक चर्चा

प्रयागराज : हिंदी साहित्य के आलोचक डॉ. नामवर सिंह प्रयागराज आएं और कॉफी हाउस न जाएं तो ऐसा हो नहीं सकता था। काफी हाउस में कॉफी की चुस्कियों के साथ घंटों साहित्यिक चर्चाओं में लीन होते थे। उनके साथ होते थे शहर के साहित्यकार, कथाकार व करीबी साथी। सिविल लाइंस स्थित कॉफी हाउस उनका पसंदीदा स्थान रहा।

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वाराणसी के साथ प्रयागराज का भी करते थे जिक्र

डॉ. नामवर सिंह का हमेशा संबोधन में वाराणसी के साथ-साथ प्रयागराज का नाम अवश्य लिखते थे। इस शहर से उनका इतना गहरा लगाव था कि यदि उन्हें किसी भी साहित्यिक परिचर्चा या गोष्ठियों में आमंत्रित किया जाता था वह आने के लिए तैयार हो जाते थे। ट्रेन से वह सीधे यहां पहुंच जाते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. चित्तरंजन दास ने डॉ. नामवर सिंह के साथ एक शिष्य के रूप में दस साल तक बिताया। डॉ. नामवर सिंह के बारे में इन्होंने गहरा अध्ययन भी किया।

प्रयागराज की साहित्यिक गतिविधियों में शामिल होते थे

डॉ. चित्तरंजन दास ने कहा कि गुरु जी 'परिमल संस्था' के सभी साहित्यिक गोष्ठियों में शामिल होने के लिए आते थे। इसके अलावा हिंदुस्तानी एकेडेमी में आयोजित साहित्यिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेने पहुंचते थे। अधिकांश वह कथाकार मार्कंडेय सिंह के घर पर कई दिनों तक ठहरते थे। डॉ. चित्तरंजन दास बताते हैं कि गुरु जी मृदुभाषी व्यवहार के थे। वह जब भी अपने चिर परिचितों से मिलते थे तो वह घर परिवार सभी का कुशल क्षेम पूछना नहीं भूलते थे।

बेल्‍हा के साहित्यकारों ने दी श्रद्धांजलि

देश के प्रख्यात आलोचक और मार्क्‍सवादी चिंतक, कवि, लेखक डॉ. नामवर सिंह के निधन पर साहित्य जगत मर्माहत है। जिले के साहित्यकारों ने प्रतापगढ़ में गुरुवार को भावांजलि सभा का आयोजन प्रतापगढ़ शहर के बाबागंज में किया। दिल्ली से आए प्रतापगढ़ के कवि व आलोचक डॉ. ओम निश्चल के कहा कि हिंदी आलोचना को नए और प्रगतिशील मूल्यों से जोडऩे में डॉ. नामवर का योगदान याद रहेगा। हिंदी संसार को आलोचना, भाषा और साहित्य चिंतन की लगभग 50 से अधिक कृतियां भी उन्होंने दीं। कवि दया शंकर शुक्ल हेम ने कहा कि उन्होंने हिंदी में दूसरी परंपरा की खोज के बहाने हजारी प्रसाद द्विवेदी और कबीर की साहित्यिक परंपरा को रेखांकित किया।

परंपरा और आधुनिकता के बीच का मजबूत सेतु : अनुज

संयोजक कवि व लेखक अनुज नागेंद्र ने कहा कि नामवर ने कविता के नए प्रतिमान रचकर आधुनिक ङ्क्षहदी कविता को परखने ने नए काव्यशास्त्रीय उपकरण हमें दिए। साहित्यकार राजमूर्ति ङ्क्षसह सौरभ ने नामवर को परंपरा और आधुनिकता के बीच का मजबूत सेतु बताया। वरिष्ठ साहित्य समालोचक डा. दुर्गा प्रसाद ओझा ने अपभ्रंश भाषा के अनुशीलन की दिशा में नामवर के प्रयत्नों की सराहना की। सुनील प्रभाकर, डा. श्याम शंकर उपाध्याय, राजेश प्रतापगढ़ी, अंजनी अमोघ, अनूप आदाब, गंगा प्रसाद भावुक व देशराज घायल आदि मौजूद रहे।


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