मां, मातृभाषा, मातृभूमि और नारी शक्ति का करें सम्मान : चिदानंद
मातृभाषा हमारी संस्कृति की संवाहक है। किसी भी देश की संस्कृति वहां की भाषा और बोली से जानी जाती है। मातृभाषा हमें अपने जड़ों से जोड़े रखती है। भारतीय संस्कारों से जोड़े रहती है। साथ ही हमें राष्ट्रीयता से जोड़े रखती है।
नैनी (प्रयागराज) : परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आह्वान किया कि मां, मातृभाषा, मातृभूमि और नारी शक्ति का सम्मान करें। दुनिया में इन तीनों का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मातृभाषा जिंदा रहेगी तो भाषाई तौर पर विविधिता में एकता बनी रहेगी। उन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों से आए श्री राम कथा प्रेमियों को मां, मातृभाषा और मातृभूमि के सम्मान का संकल्प कराया।
स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया है कि मां, धरती मां, मातृभूमि और मातृभाषा का सम्मान करें। धरती मां को संरक्षण प्रदान करें। उसे हरा-भरा और समृद्धि बनाएं। मातृभाषा हमारी संस्कृति की संवाहक है। किसी भी देश की संस्कृति वहां की भाषा और बोली से जानी जाती है। मातृभाषा हमें अपने जड़ों से जोड़े रखती है। भारतीय संस्कारों से जोड़े रहती है। साथ ही हमें राष्ट्रीयता से जोड़े रखती है। दुनिया में रहने वाले समस्त प्राणियों को प्राणवान बने रहने के लिए प्राणवायु आक्सीजन की जरूरत होती है और वह प्राणतत्व वृक्षों में समाहित है।
अत: आने वाली पीढिय़ों के जीवन को बनाये रखने के लिए वृक्ष का पोषण करना नितांत आवश्यक है।
कथावाचक मुरलीधर महाराज ने कहा कि हमारे अनेक दिव्य ग्रंथों से हमें मातृभाषा और बोलियों के होने का प्रमाण मिलता है। उस समय ये भाषाएं नहीं होतीं तो हम अपने ग्रंथ और संस्कृतियों की जानकारी नहीं पाते। आइए इनके संरक्षण का संकल्प करें। अधिक से अधिक अपनी मातृ-भाषा को अपनाएं और आने वाली पीढिय़ों को भी उससे जोड़ें। स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज और मुरलीधर महाराज के सान्निध्य में कथा प्रेमियों ने हाथ खड़े कर मातृभाषा से जुडऩे का संकल्प लिया।