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RSS thinker KN Govindacharya : समृद्धि का पकवान संस्कृति की थाली में परोसें Prayagraj News

RSS thinker KN Govindacharya ने कहा कि समृद्धि का पकवान संस्कृति की थाली में परोसने की जरूरत है। भव्यता की होड़ में दिव्यता की उपेक्षा किसी भी हाल में नहीं करनी चाहिए।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 16 Sep 2020 05:03 PM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 05:03 PM (IST)
RSS thinker KN Govindacharya : समृद्धि का पकवान संस्कृति की थाली में परोसें Prayagraj News
RSS thinker KN Govindacharya : समृद्धि का पकवान संस्कृति की थाली में परोसें Prayagraj News

प्रयागराज,जेएनएन।  भारत सत्ता से नहीं संस्कारों से चलता है। राज सत्ता से नहीं धर्म सत्ता से चलता है। नैतिकता व धर्म व्यापक अर्थों में भारत के जीन में है क्यों कि भारत का विशिष्ट उद्देश्य है। यह कहना है देव प्रयाग से गंगा सागर तक अध्ययन प्रवास पर निकले आरएसएस के विचारक केएन गोविंदाचार्य का। प्रयागराज पहुंचने पर डॉ. प्रमोद शर्मा के साथ फेसबुक लाइव में गंगा भारत की जीवन रेखा है विषय पर अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि समृद्धि का पकवान संस्कृति की थाली में परोसने की जरूरत है। भव्यता की होड़ में दिव्यता की उपेक्षा किसी भी हाल में नहीं करनी चाहिए। देवरहा बाबा का उल्लेख कर बताया कि एक बार उन्होने कहा था कि गायत्री भारत की वाग है। गऊ मन स्वरूपणी है। गऊ प्रसान्न तो भारत प्रसान्न, गऊ उदास तो भारत उदास। गंगा मैया तो भारत का प्राण है। इसी क्रम में उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस को संदर्भित कर कहा कि परमहंस ने ब्रज की रज, जगन्नाथ का भात, गंगा जल को जागृत देव बताया है सूर्य के समान। यह भी कहते हैं कि सभी बातें आस्था के अधिष्ठान पर लगती हैं लेकन भारत में आस्था विज्ञान सम्मत है। अब विज्ञान बचकानी स्थिति में है, इसलिए इन आस्था का वैसा परीक्षण नहीं हो सका।

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अब तक गंगा ऐक्ट नहीं बना

गोविंदाचार्य कहते हैं कि 2008 में गंगा राष्ट्रीय नदी बनीं लेकिन गंगा ऐक्ट अब तक नहीं बना। इकोसेंसटिव जोन भी नहीं बन सका। अवैध खदान पर भी रोक नहीं लगी। हां संतोष की बात है कि लोग अब गंगा के किनारे प्रात: क्रिया के लिए नहीं आते। कुछ जगहों पर अच्छे घाट भी बने हैं।

प्रकृति केंद्रित विकास की जरूरत

बाजारवादी संकल्पना व मानव केंद्रित संकल्पना को छोड़कर प्रकृति केंद्रित विकास की ओर बढऩे की जरूरत है।  जमीन, जल, जंगल, जानवर के साथ जन का अनुकूल जीवन ही सुखद होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस आत्मनिर्भर भारत की बात की है वह सिर्फ वस्तुओं के क्षेत्र की बात नहीं है। वह विचारों, दर्शन की बात है।  भारतीय चिंतन में दुनिया एक परिवार है। परिवार, हम दो हमारे दो नहीं। यह है परिवार, परिकर और परिजन।


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