Birth anniversary of Govind Ballabh Pant : संगम नगरी से गहरा नाता रहा है गोविंद वल्लभ पंत का
Birth anniversary of Govind Ballabh Pant 1946 में जब वह मुख्यमंत्री बने उस दिन अनंत चतुर्दशी थी और तारीख थी 10 सितंबर। इसके हर वर्ष 10 सितंबर को ही जन्मदिन मनाने लगे।
प्रयागराज,जेएनएन। भारत रत्न पं. गोविंद वल्लभ पंत का संगम नगरी से गहरा नाता रहा है। जुलाई 1905 में स्नातक की पढ़ाई करने के लिए वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के म्योर सेंट्रल कॉलेज आए। यहीं पर उन्हें मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, तेज बहादुर सप्रू और सुंदर लाल जैसे चोटी के नेता के भाषण सुनने को मिले। इसके बाद दिसंबर 1905 में वाराणसी में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पंत जी और उनके साथी हरगोविंद पंत स्वयंसेवक के रूप में शामिल हुए। गोपाल कृष्ण गोखले के अध्यक्षीय भाषण ने पंत जी के हृदय पर गहरा असर डाला। उन्होंने गोखले को अपना राजनैतिक गुरु मान लिया।
आर्यकन्या डिग्री कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मुदिता तिवारी बताती हैं कि 1907 में गोपाल कृष्ण गोखले प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) आए। उन्हें सुनने के लिए म्योर कॉलेज के विद्यार्थी बड़ी संख्या में जुटे। सभी में गोखले जी ने नवयुवकों को राष्ट्रीय हित के कार्यों में अपना समय देने का आह्वान किया। उस बात को पंत जी ने गांठ बांध लिया और उम्र भर उसका निर्वहन भी किया।
हिंदू छात्रावास में रहते थे गोविंद वल्लभ पंत
इलाहाबाद में पंत जी मैकडॉनल हिंदू बोर्डिंग हाउस (हिंदू हॉस्टल) में रहते थे। इस हॉस्टल में कुमाऊं के कई विद्यार्थी थे। यहां छात्रों से मिलने मदन मोहन मालवीय भी प्राय: आते थे। उनकी प्रेरणा से गोविंद वल्लभ पंत राजनीतिक रूप से सक्रिय हुए। 1907 में कुंभ के मेले में वह कांग्रेस के मंच से उसके सिद्धांतों का प्रचार करने लगे। इसकी सूचना जब म्योर सेंट्रल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. जेनिंग्स के पास पहुंची तो उन्होंने पंत जी को परीक्षा में बैठने से रोक दिया। अध्यापकों व अन्य छात्रों को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने मदन मोहन मालवीय, सतीश चंद्र बनर्जी प्रिंसिपल से मिले। गणित के अध्यापक कॉक्स के समझाने पर प्रिंसिपल जेनिंग्स ने अपना आदेश वापस ले लिया।
इलाहाबाद से की विधि की पढ़ाई
म्योर सेंट्रल कॉलेज में ही लॉ कॉलेज खुलने पर गोविंद वल्लभ पंत और उनके साथियों ने दाखिला लिया। कॉलेज के प्रिंसिपल आरके सोराबजी थे। विधि की पढ़ाई के समय कई अन्य नामचीन लोगों से भी पंत जी को मिलने का अवसर मिला। इनमें डॉक्टर एमएल अग्रवाल, मोती लाल नेहरू, तेज बहादुर सप्रू प्रमुख थे। ये सभी लोग कॉलेज में व्याख्याता थे। इसके अतिरिक्त लाला लाजपत राय, सुरेंद्र नाथ बनर्जी, रास बिहारी बोस आदि को भी सुनने का अवसर मिला। मदन मोहन मालवीय से उनके घनिष्ठ संबंध स्नातक की पढ़ाई के दिनों से ही हो गए थे। यही वजह है कि देशप्रेम और आजादी के आंदोलन में वे निरंतर सक्रिय होते गए।
संगीत में भी रखते थे रुचि
गोविंद वल्लभ पंत बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह प्रतिदिन संगीत का भी अभ्यास करते थे। विहाग और भीमपलासी रागों को वह स्वर से गाते थे। वाद विवाद प्रतियोगिता में भी उत्साह के साथ हिस्सा लेते थे। एक वाद विवाद प्रतियोगिता में ब्रिटिश शासन काल में भारत का आॢथक पतन विषय पर उनके विचार सुनकर लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल सोराब जी ने कहा, यह बालक आगे चलकर भारत की महत्वपूर्ण हस्तियों में शुमार होगा। सोराब जी की अपेक्षा के अनुरूप ही पंत जी ने एलएलबी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और लैम्सडेन स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
विधि कॉलेज में बिताए समय को सर्वश्रेष्ठ मानते थे
विधि कॉलेज में बिताये गए समय को वह अपने जीवन का सर्वाधिक रचनात्मक और आनंददायक समय मानते थे। इस बात का खुलासा उन्होंने खुद किया था। 1949 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विधि विभाग का उद्घाटन करते हुए पंत जी यादों में खो गए थे। उन्होंने कहा, उन दिनों हमारे कॉलेज की कोई अपनी इमारत नहीं थी। कक्षाएं म्योर सेंट्रल कॉलेज के एक भाग में चलती थीं। लॉ कॉलेज का कोई छात्रावास भी नहीं था। वहां के विद्यार्थी कटरा रोड के एक मकान में रहा करते थे।
अनंत चतुर्दशी के दिन हुआ था जन्म
भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत का जन्मदिन यूं तो 10 सितंबर को मनाया जाता है लेकिन वह पैदा हुए थे 30 अगस्त 1887 को अनंत चतुर्दशी के दिन। 1946 में जब वह मुख्यमंत्री बने, उस दिन अनंत चतुर्दशी थी और तारीख थी 10 सितंबर। इसके बाद उन्होंने हर वर्ष 10 सितंबर को ही अपना जन्मदिन मनाना शुरू कर दिया।