कौशांबी जिले में युवा किसानों को लुभा रही लौकी की खेती
इन दिनों छोटे किसानों को लौकी की फसल लुभा रही रही है। बंपर पैदावार होने के साथ दाम भी अच्छे मिलने से किसान बहुत खुश हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। अब तक खेती पर केवल किसान ही मेहनत करते थे। बाकी युवा इसे दोयम दर्जे का काम मानकर नौकरी और दूसरे कारोबार पर जोर देते रहे हैैं। मगर अब इस रूख पर बदलाव दिख रहा है। नए दौर के युवा और किसान खेती को गंभीरता से ले रहे हैैं। लघु एवं सीमांत वर्ग के किसानों का रुझान पारंपरिक खेती से हटकर सब्जी के उत्पादन की ओर बढ़ा है। पडोसी जनपद कौशांबी के चायल व मूरतगंज विकास खंड क्षेत्र के दर्जनों किसान लौकी की खेती कर आर्थिक स्थिति में सुधार ला रहे हैं।
पैदावार के साथ दाम भी अच्छा मिलने से किसान खुश
गेंहू और धान की परंपरागत फसलों से किसानों का मोहभंग हो रहा है। इन फसलों में अधिक लागत और कम आमदनी के चलते खासकर छोटे किसान आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर किसानों ने सब्जी व अन्य फसलें उगाना शुरू कर दिया हैं। इन दिनों छोटे किसानों को लौकी की फसल लुभा रही रही है। बंपर पैदावार होने के साथ दाम भी अच्छे मिलने से किसान बहुत खुश हैं। विकास खंड चायल व मूरतगंज के किसान लौकी की खेती बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। मुजाहिदपुर, पल्हाना, पट्टीनरवर, देवरा, छबिलवा, नौगीरा आदि गांवों में तमाम किसान लौकी का उत्पादन कर रहे हैैं।
दो बीघा खेती में हर 250 से 300 लौकी तोडी जा रही
मुजाहिदपुर के किसान जगदीश प्रताप ने बताया कि उन्होंने दो बीघा खेत में लौकी लगा रखी है। हर दूसरे दिन 250 से 300 तक लौकी तोड़ी जा रही है। स्थानीय बाजार में ही लौकी की बिक्री हो जाती है। लौकी की बिक्री से हर माह 50 हजार रुपये की आय हो रही है। पल्हाना निवासी किसान रामसागर का कहना है कि लौकी की खेती वर्ष में दो बार होती है। फसल लगाने के बाद छह माह तक लौकी होती है।
स्केटिंग पर फसल चढ़ाने से बढ़ा उत्पादन
मूरतंगज के किसान सोहन लाल किसान ने बताया कि वह पिछले पांच वर्ष से लौकी की खेती करते हैं। पहले जमीन पर फसल उगाते थे, लेकिन कृषि वैज्ञानिक डॉ. मनोज सिंह की सलाह के बाद खेतों में डोरी की स्केटिंग बनाकर लौकी की खेती कर रहे हैैं। इससे उत्पादन चार गुना बढ़ जाता है। कहा कि क्षेत्र के और किसान भी खेतों में डोरी की स्टेङ्क्षकग बनाकर लौकी की खेती कर रहे हैैं।