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सावधान रहें वरना कृत्रिम रोशनी आपको कर देगी बीमार, Allahabad University में प्रो. रिजवी के शोध में चौंकाने वाले हैं तथ्‍य

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के बॉयोकेमेस्ट्री विभाग के प्रोफेसर एसआइ रिजवी ने शोध में दावा किया कि रात में अक्सर स्मार्ट फोन और कंप्यूटर द्वारा उत्सर्जित कृत्रिम रोशनी के संपर्क में भी रहने से बुरा प्रभाव पड़ता है। मानव शरीर विज्ञान पर कृत्रिम रोशनी से ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ने के खतरे रहते हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 12:13 PM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 12:13 PM (IST)
सावधान रहें वरना कृत्रिम रोशनी आपको कर देगी बीमार, Allahabad University में प्रो. रिजवी के शोध में चौंकाने वाले हैं तथ्‍य
प्रोफेसर रिजवी के शोध के अनुसार रात में स्मार्ट फोन, कंप्यूटर उत्सर्जित कृत्रिम रोशनी से भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। आधुनिक जीवनशैली ने इंसानों को दिन के समय में भी कृत्रिम रोशनी में बनाए रखा है। इससे हमारे शरीर की दैनिक लय बाधित होती है। यदि आप भी दिन-रात लंबे समय तक कृत्रिम रोशनी में अपना वक्त बिता रहे हैं तो अब सावधान हो जाएं। क्योंकि कृत्रिम रोशनी मानव शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव के अलावा तमाम तरह की बीमारियों को जन्म देती है। यह चौंकाने वाले तथ्य इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के बॉयोकेमेस्ट्री विभाग के प्रोफेसर एसआइ रिजवी के शोध में सामने आए हैं।

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प्रोफेसर रिजवी ने शोध में दावा किया कि रात में अक्सर स्मार्ट फोन और कंप्यूटर द्वारा उत्सर्जित कृत्रिम रोशनी के संपर्क में भी रहने से बुरा प्रभाव पड़ता है। वह कहते हैं मानव शरीर विज्ञान पर कृत्रिम रोशनी से ऑक्सीडेटिव तनाव के बढ़ने के खतरे रहते हैं। इसकी वजह से अन्य बीमारियां भी बढ़ती हैं। कृत्रिम प्रकाश के लंबे संपर्क में ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा हो सकता है। इसके चलते फ्री रेडिकल्स (अस्थिर परमाणु जो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है, यह बीमारी और उम्र बढऩे का कारण बनता है) और एंटीऑक्सीडेंट (जो ऑक्सीकरण को रोकते हैं, एक रासायनिक प्रक्रिया जो शरीर में फ्री रेडिकल्स का उत्पादन कर सकते हैं।)

प्रो. रिजवी बोले, दिमाग में भी ऑक्सीडेटिव तनाव अपना दुष्प्रभाव छोड़ता है

प्रोफेसर रिजवी की मानें तो चूहों पर किए गए शोध में पता चला कि कृत्रिम में रहने से चूहों में ऑक्सीडेटिव तनाव विकसित होता है। यह स्थिति मनुष्यों में भी पाई जाती है। ऐसे में हृदय, गुर्दे और लीवर की बड़ी बीमारियां जन्म लेती हैं। यही नहीं दिमाग में भी ऑक्सीडेटिव तनाव अपना दुष्प्रभाव छोड़ता है। प्रो. रिजवी ने बताया कि जिन चूहों को मेलाटोनिन नामक एक हार्मोनल दवा दी गई थी, उन्हेंं कृत्रिम प्रकाश प्रेरित ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाया गया था। मेलाटोनिन एक हार्मोन है जो रात में मस्तिष्क में पीनियल ग्रंथि द्वारा स्रावित होता है। मेलाटोनिन का स्राव तब रुकता है जब तक आंखों में रोशनी होती है। यह केवल अंधेरे में स्रावित होता है।

शोध अमेरिका के शोध जर्नल क्रोनोबॉयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित है

प्रोफेसर रिजवी ने बताया कि यदि किसी को सुबह छह बजे उठने की आदत है तो वह खुद ही छह बजे उठ जाता है। भले ही वह देर रात में सोया हो। यह शोध हाल में अमेरिका की जानी मानी शोध जर्नल क्रोनोबॉयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित हुई है।


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