Lockdown 4.0 : प्रवासी मजदूरों व उद्यमियों की लालगोपालगंज के चुनरी उद्योग से जगी आस Prayagraj News
लालगोपालगंज का चुनरी कारोबार अब कुटीर उद्योग में तब्दील हो चुका है। यहां चुनरी गमछा रामनामी और कलावा कारोबार से जुड़े कामगारों की उम्मीदें हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। ब्रिटिश काल से चला आ रहा लालगोपालगंज का चुनरी कारोबार संसाधन की कमी एवं असुविधा की भेंट चढ़ता जा रहा है। बड़े पैमाने पर चल रहा चुनरी उद्योग कुटीर उद्योग की राह पर है। हालांकि कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन में उद्यमियों के घर वापसी से एक तरफ चुनरी व्यवसायी अपने कारोबार को पंख लगता देख रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर प्रवासी मजदूर भी चुनरी उद्योग में अपना रोजगार ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं।
अंग्रेजों के शासनकाल से चुनरी का पुश्तैनी कारोबार होता रहा है
लालगोपालगंज कस्बा की जनसंख्या तकरीबन 50 हजार है। यहां अंग्रेजों के शासनकाल से चुनरी का पुश्तैनी कारोबार होता आ रहा है। कच्चा कपड़ा पर रंग चढ़ाने की कारीगरी ने लालगोपालगंज के चुनरी व्यवसाय को एक मुकाम तक पहुंचा रखा है। यहां घर-घर में चुनरी, रामनामी, गमछा और कलावा के कारोबार ने जब तरक्की की रफ्तार पकड़ी तो कस्बा में कच्चे कपड़े की धुलाई, रंगाई और प्रोसेङ्क्षसग के साथ कंप्यूटर से डिजाइङ्क्षनग की फैक्ट्री लग गई। इससे संबंधित जगह-जगह छोटे बड़े कल कारखाने स्थापित हो गए। मजदूर और कारीगरों की भरमार ने चुनरी व्यवसाय को सुरैया पर पहुंचा दिया। हालांकि समय का चक्र बदलने के साथ व्यवसायिक संसाधन, कारीगर और मजदूरों की जहां किल्लत शुरू हुई वहीं दूरदराज के व्यापारियों को जरूरत के मुताबिक माल न मिलने से दिन-प्रतिदिन सब कुछ बदलता गया। इससे वर्तमान समय में कस्बा का चुनरी कारोबार कुटीर उद्योग में तब्दील हो गया है।
बंद फैक्ट्री और कल-कारखानों से उम्मीद जगी
लॉकडाउन में घर वापसी करने वाले स्थानीय प्रवासी मजदूरों की निगाहें चुनरी की बंद फैक्ट्री और कल-कारखानों पर टिकी हैं। मजदूरों के अभाव में ठप पड़े चुनरी कारोबार के पुन: शुरू होने की उम्मीद है। लॉकडाउन से पहले महिलाएं घरों में रहकर बंधेज चुनरी बांधकर अपने परिवार की जीविका चलाती थीं। वहीं हर तरह का कारोबार बंद होने से हुनरमंद महिलाएं घरों में बेकार बैठी हैं।
सरकारी सहायता का अभाव
सरकारी सहायता के अभाव में सिसकियां ले रहा चुनरी कारोबार सिसकियां ले रहा है। अच्छे कपड़े और सूत पर हाथों की कारीगरी ने देश की प्रसिद्ध एवं प्राचीन माता की मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली चुनरी ने देश में कस्बा का नाम तो जरूर रोशन कर दिया परंतु सरकारी इमदाद न मिलने से कारोबार की डोर दिन-प्रतिदिन कमजोर होती चली गई। व्यवसायी आमदनी से ज्यादा खर्चे की लगातार मार झेलते रहे। यहां तक कि हस्तशिल्प का कार्ड बनवाने के लिए कारीगरों को दर-ब-दर की ठोकर खानी पड़ती है, जिससे चुनरी कारोबार लुप्त होने के कगार पर खड़ा है।
हुनर सिखाता है चुनरी व्यवसाय
चुनरी उद्योग ही एक ऐसा व्यवसाय है जहां बिना योग्यता वाले मजदूर को आहिस्ता आहिस्ता कारीगरी का हुनर सिखाया जाता है। लगन से काम करने वाला मजदूर महज छह महीने में कपड़े पर रंग चढ़ाने का काम अच्छी तरह से सीख जाते हैं, जिससे मजदूरी की तनख्वाह पर काम करने वाला छह महीने में कारीगरी की पगार का मालिक हो जाता है।
परवान चढ़ सकता है चुनरी कारोबार
लालगोपालगंज कस्बा के चुनरी फैक्ट्री में लाखों रुपये की अलग अलग दर्जन भर मशीन आज कबाड़ साबित हो रही हैं। लॉकडाउन में कस्बा समेत आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासी मजदूरों के वापसी से बेकार लोगों की बाढ़ आ गई है। एक तरफ प्रवासी मजदूरों को रोजगार की तलाश है तो वहीं दूसरी ओर चुनरी कारोबारियों को मजदूरों की दरकार हो सकती है। चुनरी कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए दोनों एक दूसरे के पूरक साबित हो सकते हैं।