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Kumbh mela 2019 : बछिया एक पर दान बार-बार, अलग है कुंभ में गोदान का अर्थशास्त्र

प्रयागराज के कुंभ मेला में गोदान का महत्‍व संगम स्‍नान से अधिक है। यहां बछिया का मालिक ही उसे दूसरे के हाथों दान कराता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 05 Feb 2019 12:01 PM (IST)Updated: Tue, 05 Feb 2019 12:01 PM (IST)
Kumbh mela 2019 : बछिया एक पर दान बार-बार, अलग है कुंभ में गोदान का अर्थशास्त्र
Kumbh mela 2019 : बछिया एक पर दान बार-बार, अलग है कुंभ में गोदान का अर्थशास्त्र

विजय यादव, कुंभनगर : बचपन से सुनते आए, दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते, पर कुंभ में गोदान का अर्थशास्त्र अलग है। यहां बछिया का मालिक ही उसे दूसरे के हाथों दान करवाता है और यह दान वह खुद प्राप्त करता है। गोदान की महत्ता के बीच उसकी बछिया कितनी बार दान में उसे ही मिल चुकी है, यह शायद तीर्थ पुरोहित को भी नहीं पता होता। बछिया का दाम भी यजमान की हैसियत देखकर तय होता है। यह अर्थशास्त्र केवल गोदान पर लागू नहीं होता, बल्कि तीर्थराज में होने वाले 84 प्रकार के दान में भी यह मोलभाव चलता है।

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प्रयागराज में दान की महत्ता संगम स्नान से अधिक

प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पुण्य की डुबकी का जितना महत्व है, उससे भी बढ़कर यहां दान की महत्ता है। पौराणिक मान्यता है कि तीर्थराज में किया गया दान परलोक में कई गुना फलदायक होता है। इसी विश्वास के तहत यहां आने वाले श्रद्धालु खुद को 84 लाख योनियों में जन्म लेने से मुक्ति दिलाने के लिए 84 वस्तुओं का दान करने को तत्पर रहते हैं। इनमें गोदान, गुप्तदान, अन्नदान, फल दान, तांबूल दान, वेणी दान, भूमि दान, तुला पुरुष दान, सर्वस्व दान, ब्रह्मïांड दान आदि प्रमुख हैं। राजा हर्षवर्धन शायद इसी मान्यता के तहत प्रयागराज आकर अपना सर्वस्व दान कर देते थे। मोक्ष दिलाने वाले इन तमाम दान में गोदान का विशेष महत्व है। सो यहां आने वाले श्रद्धालु खुद और अपने पुरखों को तारने के लिए गोदान करने को प्रेरित रहते हैं।

तीर्थ पुरोहित कहते हैं, कोई दिक्कत नहीं बछिया है न

कुंभ में मौनी अमावस्या पर आने वाले श्रद्धालुओं ने भी संगम में मौन की डुबकी लगाने के बाद दान कार्य किया। इन श्रद्धालुओं में गोदान की चाह सबसे ज्यादा दिखी। लेकिन, उनके पास गाय तो थी नहीं, तो करते क्या, लेकिन उनकी इस समस्या का हल यहां के तीर्थ पुरोहितों के पास मौजूद था। यहां जगह-जगह इन तीर्थ पुरोहितों के तख्त सजे हैैं। हर तख्त के साथ एक बछिया बंधी रहती है, जो गोदान का जरिया बनती है। गाजीपुर के नवलकांत राय ऐसे ही एक तख्त पर पहुंचकर तीर्थ पुरोहित से गोदान की इच्छा जाहिर करते हैं। पुरोहित उन्हें बछिया दिखाते हुए कहते हैं कोई दिक्कत नहीं, बछिया है।

आप नकद दक्षिणा देकर बछिया का दान कर सकते हैैं

आप नकद दक्षिणा देकर बछिया का दान कर लीजिए। पुरोहित बछिया का दाम पांच हजार बताते हैैं, इतनी रकम सुनकर नवल वहां से जाने लगते हैं। फिर शुरू होता है मोलभाव और अंतत: सौदा हजार रुपये में तय हो जाता है। नवल बछिया के मालिक को ही उसे दान कर पुण्य कमाने के अहसास से भर उठते हैं। ऐसा नहीं था कि यह बछिया नवल के हाथों पहली बार दान कराई गई, यह इससे पहले भी कई बार दान हो चुकी थी, तो इसके बाद भी कई हाथों ने नकद देकर इसे दान किया। गोदान का यही अर्थशास्त्र यहां होने वाले अन्य दान भी लागू होता है।


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