कोरोना संकट काल में इन महिलाओं ने शुरू किया ये काम जो परिवार के लिए बना सहारा
आफत की घड़ी में प्रतापगढ़ के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पूरी लगन के साथ मास्क बनाने में जुटी हैं। आपदा के बीच इनके लिए मास्क बनाने का काम बड़े अवसर के रूप में सामने आया। समूह की महिलाओं द्वारा तैयार कपड़े के मास्क की खासी डिमांड है।
प्रतापगढ़, जागरण संवाददाता। पूरी दुनिया में फैली कोरोना महामारी की चेन तोड़ने के लिए सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से भरसक प्रयास किया जा रहा है तो इस दिशा में महिलाएं भी सक्रिय भागीदारी निभा रहीं हैं। महामारी के आफत की घड़ी में प्रतापगढ़ के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पूरी लगन के साथ मास्क बनाने में जुटी हैं। आपदा के बीच इन महिलाओं के लिए मास्क बनाने का काम रोजगार के बड़े अवसर के रूप में सामने आया है। समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे कपड़े के मास्क की खासी डिमांड है। अब इस काम से उनके परिवार को सहारा मिला है तो कोरोना की चेन तोड़ने में भी समाज की सहायता हो रही है।
पति की कमाई से चल नहीं रहा था खर्च
हम बात कर रहे हैं प्रतापगढ़ जिले के गौरा ब्लाक के पड़वा नसीरपुर गांव की। यहां की गीता देवी, अनीता, मीरा व कुसुम, सराय सुल्तानी की रेखा, सुमन, पुष्पा व भूसलपुर देवगढ़ कमासिन की अमिता, लता सहित दर्जन भर महिलाएं गरीब परिवार से थीं। पति की छोटी सी कमाई से परिवार का खर्च चलना मुश्किल हो गया था।
परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा था। गरीबी को मात देने के लिए कौन सा कारोबार शुरू करूं, यह चिंता खाए जा रही थी। जब छोटा कामकाज शुरू करने की योजना बनाई तो पैसा आड़े आने लगा। फिलहाल गांव में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत समूह से जोड़ने के लिए टीम गरीब महिलाओं को जागरूक कर रही थी। उसमें यह बताया जा रहा था कि समूह से जुड़ने के बाद रिवाल्विंग फंड व सामुदायिक निवेश निधि के तहत कारोबार शुरू कर सकती हैं। महिलाओं ने जब टीम की बात सुनीं तो उनमें यह उम्मीद जगी कि समूह से जुड़ने के बाद जीवन में बदलाव आ सकता है। फिलहाल यह महिलाएं वर्ष 2018 से 19 में स्वयं सहायता समूह से जूुड़ीं। इन महिलाओं ने कम पैसे में मास्क बनाने का कारोबार शुरू किया। पिछले साल की तरह इस बार भी महिलाएं व्यापक स्तर पर मास्क बना रहीं हैं। दो हजार से अधिक मास्क बना चुकी हैं। 10 हजार और बनाने की तैयारी में है। डिमांड पर मास्क बनाने से जहां महिलाओं की अच्छी आय हो रही है। एनआरएलएम के डीसी डाॅ. एनएन मिश्रा, जिला मिशन प्रबंधक ज्योतिमा कश्यप, सुमन पांडेय, सुनीता सरकार, ब्लाक मिशन प्रबंधक किरन वर्मा की प्रेरणा भी रंग लाई।
इन महिलाओं को मिला रोजगार
गांव में समूह से जुड़ी शोभा, कविता, गायत्री कमलेश कुमारी, सोनम सहित दो दर्जन महिलाओं को रोजगार भी मिला है। यह महिलाएं मास्क बना रहीं हैं। किसी को सिलाई करने की जिम्मेदारी दी गई तो कोई मास्क में लोगो लगा रहीं हैं। इन महिलाओं को दैनिक मजदूरी के हिसाब से पैसा दिया जाता है। कई महिलाएं तो मानदेय पर भी काम रह रहीं हैं।
मुंबई तक जाता है मास्क
महिलाओं के गांव, रिश्तेदार व परिवार के कई लोग मुंबई समेत राज्यों में रहते हैं। वहां पर मास्क का दाम 30 से 40 रुपये तक है। कहीं तो इससे भी ज्यादा दाम है। जबकि इन महिलाओं द्वारा तैयार मास्क 15 से 20 रुपये में बिक रहा है। ऐसे में पिछले साल कोरोना काल के दौरान एक हजार से अधिक मास्क मुंबई समेत प्रांतों में भी डिमांड पर भेजा गया था।
10 रुपये आ रही लागत, 15 से 20 में बिक्री
समूह की हेड मीरा बताती हैं कि एक मास्क बनाने में 10 रुपये खर्च आता है, जबकि इसकी बिक्री 15 से 20 रुपये में होती है। मास्क में इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े की क्वालिटी अच्छी रहती है, इसलिए इसकी लागत आती है। फिलहाल महिलाएं शुद्ध कॉटन कपड़े का ही मास्क बना रहीं हैं।