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हाईटेक व‌र्ल्ड में बच्चों को एटीएम मशीन नहीं आत्मज्ञानी बनाएं

कबीर पारख संस्थान के 41वें वार्षिक अधिवेशन एवं सत्संग समारोह में आश्रम के अध्यक्ष संत कृपाशरण साहेब ने कहा कि अ'छे कर्म करके अ'छे संस्कारों की पूंजी हमें एकत्रित करनी चाहिए।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Oct 2018 10:00 AM (IST)Updated: Wed, 24 Oct 2018 10:00 AM (IST)
हाईटेक व‌र्ल्ड में बच्चों को एटीएम मशीन नहीं आत्मज्ञानी बनाएं
हाईटेक व‌र्ल्ड में बच्चों को एटीएम मशीन नहीं आत्मज्ञानी बनाएं

प्रयागराज : आज के इस हाईटेक व‌र्ल्ड में बच्चों को सिर्फ एटीएम मशीन ही नहीं बनाना चाहिए, बल्कि उन्हें आत्मज्ञान और संस्कारों के लिए भी प्रेरित करना चाहिए। अध्यात्म हमारे जीवन से अलग नहीं है, बल्कि जीवन जीने का सर्वोच्च ढंग है। जिसके फल में सच्ची समझ और आनंद की प्राप्ति होती है। ये बातें नागपुर से आए संत यतींद्र साहेब ने कबीर पारख संस्थान के 41वें वार्षिक अधिवेशन एवं सत्संग समारोह के दूसरे दिन मंगलवार को कही।

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सुबह का सत्र कबीर साहेब की मौलिक रचना बीजक पाठ से शुरू हुआ। कौशाबी से आए संत राम साहेब ने गुरुदेव जी की प्रसिद्ध रचना 'बिना सदाचरण धारे न कथनी काम आती है' गाकर कार्यक्रम की शुरुआत की। बाराबंकी से आए संत गुरुरमन साहेब ने कहाकि सेवा साधना मार्ग की सबसे मजबूत और पहली सीढ़ी है। सेवा के बल पर हम सिद्धि तक पहुंच सकते हैं। इटावा से आए संत रतन साहेब गुरुदेव को याद करते हुए कहा कि, वह ना सिर्फ कबीरपंथ के बल्कि पूरे अध्यात्म जगत के महान मसीहा थे। उन्होंने अपनी प्रतिभा को जल्दी पहचाना और एक अदना-सा आदमी शून्य से शिखर तक कैसे पहुंच सकता है। इसे अपनी साधनापूर्ण जीवन से पूरी दुनिया को बताया। संचालन कर रहे संत गुरुभूषण साहेब ने गुरुदेव जी को शीशे की तरह पारदर्शी बताते हुए कहा कि वे प्रेम नहीं करते थे, बल्कि प्रेम के जीवित मूर्ति थे।

आश्रम के अध्यक्ष संत कृपाशरण साहेब ने कहा कि अच्छे कर्म करके अच्छे संस्कारों की पूंजी हमें एकत्रित करनी चाहिए। बिहार से आए संत सजीवन साहेब ने कहा कि गुरुदेव जीवन में छोटी-छोटी बातों का बड़ा ख्याल रखते थे और सेवा में सदैव तत्पर और आगे रहते थे। वह किसी भी काम को जिस लगन और उत्साह से करते थे। वह आज भी हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। वड़ोदरा से पधारे संत ज्ञान साहेब ने कहा अंधश्रद्धा और पाखंड आज देश में नासूर बनता जा रहा है। सदा से ही चमत्कार को नमस्कार किया गया है और इसी झासे में पड़कर लोग अपने बुद्धि और विवेक को तिलाजलि दे रहे हैं। आश्रम प्रमुख धमर्ेंद्र साहेब ने कहा कि जो महापुरुष हमें सत्य का रास्ता बता गए हैं, हमें उनका विवेकपूर्ण अनुसरण करना चाहिए।


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