धर्म संसद ने दी राम मंदिर निर्माण के लिए मोदी सरकार को चार माह की मोहलत, मंथन खत्म
विहिप की धर्म संसद में लोकसभा चुनाव की चिंता के बीच मंदिर का प्रस्ताव रखते हुए केंद्र की मोदी सरकार को चार महीने की मोहलत और दी गई।
प्रयागराज, जेएनएन। विश्व हिंदू परिषद की बहुप्रतीक्षित धर्म संसद में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर पुरजोर ढंग से आवाज तो उठी लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों पर संतों और संघ ने पूरा संतोष जताया। लोकसभा चुनाव की चिंता के बीच मंदिर का प्रस्ताव रखते हुए केंद्र सरकार को चार महीने की मोहलत और दी गई। तय हुआ कि फिलहाल विहिप कोई नया आंदोलन खड़ा नहीं करेगी लेकिन, पूरे देश में जनजागरण मुहिम चलाएंगे और मंदिरों में सामूहिक रूप से श्रीराम के नाम का जाप करके प्रार्थना की जाएगी। कांग्रेस पर हमला बोलते हुए लोगों से अपील की गई कि चुनावी बिगुल बजने वाला है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर विरोधी दल मंदिर आंदोलन को कमजोर करना चाहते हैं। उनसे सावधान रहें। दोबारा मोदी को ही प्रधानमंत्री बनाएं।
धर्म संसद में आए प्रस्ताव
- महामंडलेश्वर अखिलेशानंद ने रखा प्रस्ताव, मंदिर जरूरी बताया
- स्वामी चिन्मयानंद ने किया अनुमोदन, गठबंधन पर जमकर बरसे
- संघ ने भी किया प्रस्ताव का समर्थन, चुनाव को लेकर चेताया
- मंहत नृत्य गोपाल दास ने मोदी सरकार सराही, दोबारा जरूरत बतायी
सरकारों के गुणगान पर हंगामा
धर्म संसद में कोई नतीजा न निकलने पर कुछ लोग भड़क गए। नारेबाजी और हंगामा करने लगे। यह कहकर कि सिर्फ केंद्र और प्रदेश सरकार का गुणगान हो रहा है। राम की चिंता किसी को नहीं। किसी तरह उन्हें शांत कराकर पंडाल से बाहर किया गया। धर्म संसद के दूसरे दिन मंदिर प्रस्ताव आना था, इसको लेकर गहमागहमी सुबह से ही थी। दोपहर करीब एक बजे विहिप पदाधिकारियों, संघ प्रमुख मोहन भागवत और संतों ने मंच संभाला। जयश्रीराम और शंखनाद के बीच जोश चरम पर था। महामंडलेश्वर अखिलेशानंद ने मंदिर पर प्रस्ताव रखा, जिसका अनुमोदन पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद ने बिना किसी विरोध के कर दिया। कुछ संतों ने तत्काल मंदिर निर्माण पर फैसले के पक्ष में विरोध किया लेकिन, उनकी संख्या बेहद कम रही। हां, अब तक भगवान राम का मंदिर न बन पाने की टीस संतों में जरूर दिखी। इसके लिए उन्होंने केंद्र में सर्वाधिक सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया।
मौजूदा सरकार के रवैये पर भी नाराजगी
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को कठघरे में खड़ा किया गया। कुछ संतों ने मौजूदा सरकार के रवैये पर भी नाराजगी जताई लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफों के पुल भी बांधे। कहा गया कि राम लला के लिए 1528 से संघर्ष जारी है मगर पूर्व की किसी सरकार ने गैर विवादित भूमि वापस लेने का प्रयास नहीं किया। संतों की मांग पर मोदी ने 15 दिन में अर्जी दाखिल कर दी। लोगों को संदेश देने की कोशिश की गई कि अब मंदिर निर्माण निर्णायक दौर में है। चुनाव भी करीब हैं। लिहाजा तमाम सियासी गठबंधन और राम का अस्तित्व नकारने वाली कांग्रेस के झांसे में न आएं। एकमत से सभी ने हामी भरी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक और मौका मिलना चाहिए। इसके लिए समूचे हिंदू समाज को एकजुट होना होगा।
संतों के संदेश का निचोड़
चुनाव आ रहे हैं। समुद्र मंथन में अमृत के साथ विष भी निकलता है। मंदिर बनाना है तो उसे पीने वाले शिव भी चाहिए। मंदिर निर्माण अब दूर नहीं है। यह सरकार नहीं तो कौन सी पार्टी मंदिर की बात कर रही है। यह भी हमें सोचना होगा।