जागरण से है भावनात्मक जुड़ाव
मेरा मूल निवास कानपुर है। बचपन व युवावास्था में वहीं रहा। दैनिक जागरण का मूल केंद्र भी कानप
मेरा मूल निवास कानपुर है। बचपन व युवावास्था में वहीं रहा। दैनिक जागरण का मूल केंद्र भी कानपुर है। इसके चलते इस अखबार से मेरा भावनात्मक जुड़ाव है। मैं युवावस्था से दैनिक जागरण पढ़ रहा हूं। अखबार के पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेंद्र मोहन से मेरे आत्मीय संबंध थे। मैं अक्सर साहित्य से जुड़े लेख व कविताएं लेकर दैनिक जागरण के दफ्तर में जाता था तब उनसे मुलाकात होती थी। नरेंद्र मोहन जी मेरे हर लेख को प्रमुखता से छपवाते थे, जरूरत के अनुरूप कुछ सुझाव भी देते थे। उस दौर में दैनिक जागरण में साहित्य को काफी तवज्जो मिलती थी। सप्ताह में एक दिन पूरा पन्ना साहित्य को समर्पित होता था। अखबार के साथ साल में एक बार बुकलेट भी आती थी, जिसमें साहित्यकारों को प्रमुखता मिलती थी।
कानपुर से 25 साल की उम्र में मैं इलाहाबाद आ गया। यहां आने पर दैनिक जागरण ढूंढता था, परंतु तब यह अखबार यहां नहीं मिला। कुछ साल के बाद दैनिक जागरण इलाहाबाद से प्रकाशित होने लगा तो मुझे काफी खुशी मिली। मैं यहां भी यह अखबार पढ़ने लगा। समय के साथ दैनिक जागरण ने खुद को सजाया व संवारा है। जब अखबार प्रकाशित होना शुरू हुआ है तब से लेकर आज तक काफी कुछ बदला है इसमें। खबरों का प्रस्तुतिकरण व उसकी विश्वसनीयता पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जो मुझे काफी अच्छी लगती है। मेरा मानना भी है कि विश्वसनीयता ही लोकप्रियता का आधार है। दैनिक जागरण यह मापदंड पूरी जिम्मेदारी से निभा रहा है। वैसे हर क्षेत्र व ज्वलंत मुद्दों को छूने का प्रयास होता है। नेता, अभिनेता व खिलाड़ियों को खासा महत्व दिया जाता है। मेरे अनुसार पहले की अपेक्षा साहित्य को थोड़ा और महत्व मिलना चाहिए। सप्ताह में एक पन्ना पूरा साहित्य को समर्पित हो, जिसमें ख्यातिलब्ध साहित्यकारों का साक्षात्कार व उनका संस्मरण प्रकाशित किया जाए। सामायिक मुद्दों पर भी साहित्यकारों के विचारों को प्रमुखता दी जाए। ऐसा करने से साहित्यकारों का अखबार के प्रति जुड़ाव होगा।
-प्रो. राजेंद्र कुमार, वरिष्ठ साहित्यकार