'दो दशकों में बाजार उन्मुख हो गया है विज्ञान शोध'
गोविंद बल्लभ पंत सामाजित विज्ञान संस्थान झूंसी में शनिवार को गोष्ठी हुई। इसमें जेएनयू मे जाकिर हुसैन शैक्षिक संस्थान के इतिहासकार प्रो. ध्रुव रैना भी शामिल हुए। उन्होंने कहा कि दो दशकों में बाजार उन्मुख हो गया है विज्ञान शोध।
जासं, इलाहाबाद : 19वीं सदी में विज्ञान की पढ़ाई केवल परीक्षा तक ही सीमित थी। हालांकि धीरे-धीरे यह शोध की तरफ बढ़ने लगी। दो दशकों से विज्ञान में शोध बाजार उन्मुख हो गया है। यह चिंता का विषय है। शोध होने चाहिए लेकिन सिर्फ मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। यह बातें गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान में शनिवार को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में जाकिर हुसैन शैक्षिक संस्थान के इतिहासकार प्रोफेसर ध्रुव रैना ने कहीं।
उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में औद्योगिक शोधों को ज्यादा महत्व देने के कारण पिछले दो दशकों में विज्ञान शोध बाज़ार उन्मुख हो गया। प्रोफेसर रैना ने अपने व्याख्यान में बताया कि किस प्रकार विज्ञान का विकास समय के साथ-साथ होता गया और आधुनिकता का प्रसार होते रहा। उन्होंने कहा कि यह भ्रामक है कि आधुनिकता अंग्रेजों की देन है। हर समाज में संस्कृति के हिसाब से आधुनिकता मौजूद रही क्योंकि विचार से ही समाज का निर्माण होता है। यह विचार एक विचार से दूसरे विचार में बदलते रहता है। औपनिवेशिक काल के समय जब मुगल साम्राज्य का पतन हुआ तब ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजों द्वारा आधुनिक विज्ञान की नीव रखी गई। किंतु यह एक संस्कृति से दूसरे में परिवर्तन का काल था। उनका विचार मुख्य रूप से इसी बात पर केंद्रित था कि विचार और विज्ञान कैसे समय और समाज के साथ बदलते गए जिसे आधुनिक विज्ञान का समाज कहा जाता है। संस्थान के निदेशक प्रोफेसर बद्रीनारायण ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर संस्थान की सहायक प्रोफेसर अर्चना सिंह, डॉक्टर कुणाल केशरी, डॉक्टर चंद्रैया आदि रहे।