समाज में जागृति लाने व पार्टी की मजबूती को BSP की तैयारी, महाड़ सत्याग्रह बना माध्यम
बसपा के सक्रिय कार्यकर्ता रामबृज गौतम ने कहा कि महाड़ सत्याग्रह हिंदू समाज की जाति व्यवस्था को ललकारने वाला कदम था। यह नए युग की शुरुआत थी। इस घटना ने भारत के सामाजिक व राजनीतिक इतिहास को नया मोड़ दिया।
प्रयागराज, जेएनएन। बहुजन समाज में जागृति और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को मजबूत करने के नए-नए फंडे इन दिनों आजमाए जा रहे हैं। इसमें अछूतों के अधिकार और उनके सामने कठिनाइयों का विवरण 19 मार्च 1927 में हुए महाड़ सत्याग्रह सम्मेलन की यादें ताजा करके प्रस्तुत किया गया।
बमरौली में हुई बसपाइयों की एक सभा में बताया गया कि डा. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि अपने अधिकार व आजादी कोई थाल में सजाकर नहीं देगा। इसके लिए संघर्ष करना पड़ेगा। अछूतों को अपने अधिकार व अपने जीवन स्तर में सुधार के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। महाड़ सत्याग्रह सम्मेलन के पहले दिन 19 मार्च 1927 की रात को विषय नियामक समिति ने यह फैसला लिया कि 20 मार्च 1927 को सुबह चवदार तालाब से पानी पीने के अछूतों के अधिकार को व्यवहारिक रूप दिया जाए। यही विडम्बना थी कि एक अछूत धर्म परिवर्तन करके ईसाई या मुसलमान हो जाने पर तालाब के पानी को छू सकता है लेकिन हिंन्दू धर्म में रहते हुए कोई अछूत तालाब के पानी को छू नहीं सकता था।
बसपा के सक्रिय कार्यकर्ता रामबृज गौतम ने कहा कि महाड़ सत्याग्रह हिंदू समाज की जाति व्यवस्था को ललकारने वाला कदम था। यह नए युग की शुरुआत थी। इस घटना ने भारत के सामाजिक व राजनीतिक इतिहास को नया मोड़ दिया। इस अकेले महाड़ संघर्ष ने भारत की सामाजिक व्यवस्था के ढांचे की चूलें हिला दी।
लालबिहारा के समाजसेवी हीरालाल बौद्ध ने बताया कि एक ओर महाड़ सत्याग्रह तालाब के कथित शुद्धिकरण के अपमान का जबाब देना था तो दूसरी ओर महाड़ नगरपालिका के सवर्ण हिंदुओं के दबाव में आकर अपना 1924 का प्रस्ताव जिसके अनुसार तालाब अछूतों के लिए खुला कर दिया था 04 अगस्त 1927 को रद्द कर दिया। बाबासाहब डा. आंबेडकर ने दोनों चुनौतियों का मुकाबला करने का फैसला किया। बैठक में अशोक गौतम बीडीसी, रंजीत सिंह, अनिल मेम्बर, अनिल गौतम चंदी, सतीश बौद्ध, अतीश बौद्ध आदि उपस्थित रहे।