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Birth Anniversary: रिक्शा पर आते थे छोटे लोहिया और दूसरे से दिलाते थे किराया, प्रयागराज रही कर्मभूमि

पांच अगस्त 1933 को बलिया के शुभनथहीं गांव में जन्मे जनेश्वर मिश्र के पिता रंजीत मिश्र किसान थे। प्राथमिक शिक्षा बलिया में ली और 1953 में प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) पहुंचे। यहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। हिंदू हास्टल में ठौर मिली। छात्र राजनीति में सक्रिय हुए

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 07:30 AM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 06:04 PM (IST)
Birth Anniversary: रिक्शा पर आते थे छोटे लोहिया और दूसरे से दिलाते थे किराया, प्रयागराज रही कर्मभूमि
बलिया में जन्मे थे मगर कर्मभूमि संगमनगरी से जुड़ी हैं उनकी तमाम स्मृतियां

जन्मतिथि पर विशेष

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जन्मतिथि : 05अगस्त 1933

मृत्यु : 22 जनवरी 2010

प्रयागराज, राजेंद्र यादव। छोटे लोहिया के नाम से विख्यात समाजवादी विचारक जनेश्वर मिश्र की जन्मतिथि आज पांच अगस्त को है। उनकी जन्मभूमि भले ही बलिया रही हो पर कर्मभूमि संगमनगरी ही थी। राजनीति में मुकाम मिलने पर भी उनका जीवन सरल तथा साधारण ही रहा। बतौर सांसद हमेशा नया कटरा स्थित अपने निवास से चौक स्थित समाजवादी पार्टी कार्यालय में रिक्शा पर जाते थे और किराया किसी कार्यकर्ता से दिलाते थे।

शुगर था, लेकिन प्रशंसकों की मिठाई खाते थे

पांच अगस्त 1933 को बलिया के शुभनथहीं गांव में जन्मे जनेश्वर मिश्र के पिता रंजीत मिश्र किसान थे। प्राथमिक शिक्षा बलिया में ली और 1953 में प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) पहुंचे। यहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। हिंदू हास्टल में ठौर मिली। छात्र राजनीति में सक्रिय हुए। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता केके श्रीवास्तव बताते हैं कि 1967 में उनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। वह लोकसभा चुनाव था और जनेश्वर मिश्र जेल में थे। फूलपुर से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित प्रत्याशी थीं। जनेश्वर ने उनके खिलाफ ताल ठोंकी। मतदान से सात दिन पहले जेल से रिहा हुए। मंसूराबाद में एंबेसडर कार से चुनावी जनसभा को संबोधित करने पहुंचे। यहां से आनापुर इंटर कालेज जाना था, लेकिन अचानक कार खराब हुई तो वह तांगा पर सवार होकर चार किलोमीटर दूर आए। यहां नारा लगा 'जेल का फाटक टूट गया जनेश्वर मिश्रा छूट गया। यह सुनकर वह गदगद हो उठे। इस चुनाव में उन्हें हार मिली लेकिन फिर इसी संसदीय सीट से वह वर्ष 1969 के उपचुनाव में विजयी हुए। सांसद और केंद्रीय मंत्री होने के बाद भी उनके पास न कोई गाड़ी थी और न बंगला। खानपान में भी डॉक्टरी सलाह की अनदेखी कर देते थे। शुगर की वजह से डाक्टरों ने मीठा खाने से मना किया गया था लेकिन कार्यकर्ताओं का मान रखने के लिए वह डिब्बे से निकालकर मिठाई खा लेते थे। कुछ कार्यकर्ता टोकते कि आपको मिठाई खाने से मना किया गया है, तो कहते 'इतने मन से लाए हो तो थोड़ा तो खाना ही पड़ेगा।

राजनीतिक सफर में हार भी मिली

वर्ष 1974 में वह इलाहाबाद संसदीय सीट से उपचुनाव जीते और फिर 1977 में इसी सीट से निवार्चित हुए। वर्ष 1984 में सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से भाग्य आजमाया लेकिन हार मिली। वर्ष 1989 में फिर इलाहाबाद संसदीय सीट से जीते। समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य भी रहे।

सात बार केंद्रीय मंत्रिपरिषद में मौका

मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, एचडी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल के मंत्रिमंडल में भी उन्होंने बतौर राज्य मंत्री और कैबिनेट मंत्री के रूप में काम किया। पहली बार वह केंद्रीय पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने थे। फिर ऊर्जा , परंपरागत ऊर्जा, खनन मंत्रालय, परिवहन, संचार, रेल, जल संसाधन, पेट्रोलियम मंत्रालय भी उन्हें मिले।


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