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प्रतापगढ़ में कैसे तीन हजार की साइकिल अब हो गई 50 हजार रुपये की, जानिए क्‍या है पूरा मामला

रेलवे में अब तक बुक कराने वाले यात्री को माल आने ले जाने की सूचना नहीं दी जाती थी। रसीद पर कोई मोबाइल नंबर नहीं होता था। अब इधर विभाग ने मोबाइल नंबर अंकित कराना शुरू किया है हालांकि तब से लाकडाउन के चलते पार्सल का आना-जाना बंद ही है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 16 Oct 2020 11:00 PM (IST)Updated: Fri, 16 Oct 2020 11:00 PM (IST)
प्रतापगढ़ में कैसे तीन हजार की साइकिल अब हो गई 50 हजार रुपये की, जानिए क्‍या है पूरा मामला
रेलवे के पार्सल रूम में आठ माह से रखी इस साइकिल की कीमत अब पचास हजार रुपये हो गई है।

प्रतापगढ़, [राज नारायण शुक्ल राजन]। भारतीय रेलवे के नियमों की बानगी देखिए। तीन हजार की यह साइकिल रेलवे के पार्सल यार्ड में आठ माह खड़े-खड़े 50 हजार की हो गई। साल भर तक कोई दावेदार नहीं आने पर इसे यहां से लखनऊ ले जाकर नीलाम किया जाएगा। वहां यह भले की कौडिय़ों के भाव बिके लेकिन अधिकारी नियमों की दुहाई देकर प्रतिघंटे किराया वसूलते हैं। रेलवे के मुख्य वाणिज्य पर्यवेक्षक अभिमन्यु कुमार ने बताया कि यह रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित नियम है। इसका पालन कराया जा रहा है। भविष्य में नियम में कोई फेरबदल होता है तो उस हिसाब से पार्सल का किराया लिया जाएगा।

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हावड़ा से प्रतापगढ़ जंक्शन के लिए बुक की गई थी साइकिल

रेलवे में पुरातन नियमों के जाल को समझना हर किसी के बस का नहीं है। हावड़ा से प्रतापगढ़ जंक्शन के लिए बुक की गई साइकिल तो मात्र उदाहरण है। 20 मार्च 2020 को ट्रेन से एक साइकिल हावड़ा से प्रतापगढ़ के लिए बुक की गई। तय समय पर पहुंचने के बाद इसे जंक्शन के पार्सल रूम में रखवा दिया गया गया।

पार्सल रूम में आठ माह बाद साइकिल का किराया बढ़कर पचास हजार पहुंचा

नियमों के मुताबिक 24 घंटे तक इसे नहीं ले जाने पर प्रतिघंटे दस रुपये का शुल्क देना होता है। करीब आठ माह बाद भी इसे लेने के लिए कोई दावेदार नहीं आया और अब शायद कोई भी न आए क्यों कि 15 अक्टूबर तक का इसका किराया बढ़ते-बढ़ते 50 हजार 400 रुपये हो गया है। यह साइकिल किसने बुक कराई, रेलवे को यह भी नहीं पता। उसे इंतजार है कि दावेदार आएगा तो बिल्टी मिलान के बाद उसे सामान सौंप दिया जाएगा। एक साल में कोई भी दावेदार नहीं आने पर सामान को लखनऊ कामर्शियल विभाग के गोदाम में भेजा जाएगा और वहां इसकी नीलामी होगी।

कबाड़ के भाव जाता है सामान

एक साल तक रखरखाव के अभाव में सामान की हालत भी खराब हो जाती है। बोली के दौरान ऐसे सामान को कबाड़ का काम करने वाले ही ले जाते हैं। इसकी कीमत भी कौडिय़ों के भाव रहती है। रेलवे को कुछ पैसे जरूर मिल जाएंगे लेकिन नियमों की आड़ में नुकसान असल मालिक का होता है।

नहीं दी जाती सूचना

रेलवे में अब तक बुक कराने वाले यात्री को माल आने, ले जाने की सूचना नहीं दी जाती थी। रसीद पर कोई मोबाइल नंबर नहीं होता था। अब इधर विभाग ने मोबाइल नंबर अंकित कराना शुरू किया है, हालांकि तब से लाकडाउन के चलते पार्सल का आना-जाना बंद ही है।


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