Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

सड़क पर रहिए सावधान, नशा, लापरवाही और तेज रफ्तार पहुंचा रहा लोगोंं को अस्पताल

खास बात यह है कि तेज रफ्तार की वजह से 50-52 फीसद सड़क हादसे होते हैं। यातायात नियमों के प्रति विभाग ही सक्रियता नहीं दिखाता है। नाबालिग भी बिना किसी डर के वाहन से फर्राटा भरते हैं। खासकर ईट-भट्ठों पर चलने वाले वाहनों में चालक नाबालिग ही पाए जाते हैं।

By Ankur TripathiEdited By: Updated: Wed, 25 Nov 2020 07:00 AM (IST)
Hero Image
28 से 30 लोग सड़क हादसों में गंभीर रूप से घायल होने के बाद इलाज कराने पहुंच रहे हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। सरकारी अस्पतालों में प्रतिदिन करीब 28 से 30 लोग सड़क हादसों में गंभीर रूप से घायल होने के बाद इलाज कराने पहुंच रहे हैं। इसमें ज्यादातर नशा और तेज रफ्तार के कारण लोग हादसे का शिकार होते हैं। वहीं, कच्ची उम्र में फर्राटा भरना 18 वर्ष से कम आयु वाले विद्यार्थियों का स्टेटस सिंबल बन गया है। इसके अलावा वाहनों के फिटनेस में खामी, ओवरलोड वाहन, ट्रैक्टर ट्रॉली और जुगाड़ वाहन चालकों की मनमानी, सड़कों पर अधूरे निर्माण कार्य, खराब ट्रैफिक सिग्नल, सड़क पर बेतरतीब ढंग से पार्किंग, सड़क की पटरियों पर खड़े खराब वाहन, यातायात नियमों का उल्लंघन भी सड़क हादसों की वजह बनते हैं।

लापरवाही से होते हैं लहूलुहान 

वाहनों को रफ्तार के साथ बगैर पूर्व संकेत के ब्रेक लगाने, अंतिम समय पर मोड़ के नजदीक सांकेतिक लाइट जलाने के दौरान पीछे चल रहे चालक टकरा जाते हैं। नतीजतन खुद तो दुर्घटना का शिकार होते ही हैं, राह चलते लोगों की जान भी सांसत में फंस जाती है। स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल के ट्रामा सेंटर के डॉ. देवेंद्र शुक्ला के मुताबिक, मार्ग दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल प्रतिदिन औसतन 18 से 20 केस आते हैं। उधर, सीआइसी डॉ. सुषमा श्रीवास्तव का कहना है कि काल्विन अस्पताल की इमरजेंसी में 10 से 12 घायल इलाज कराने पहुंचते हैं। इस तरह शहर में महीनेभर में करीब 900 लोग घायल हो रहे हैं। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो दो-तीन घायलों को जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है। यानी सालभर में करीब 11000 लोग जख्मी हो रहे हैं तो वहीं, एक साल में करीब 1000 लोगों की मौत भी हो रही है।  

तेज रफ्तार बन रहा घातक

खास बात यह है कि तेज रफ्तार की वजह से 50-52 फीसद सड़क हादसे होते हैं। यातायात नियमों के प्रति विभाग ही सक्रियता नहीं दिखाता है। यहां नाबालिग भी बिना किसी डर के वाहन से फर्राटा भरते हैं। खासकर ईट-भट्ठों पर चलने वाले वाहनों में चालक नाबालिग ही पाए जाते हैं। ज्यादातर बाइक और स्कूटी सवारों पर तो इन नियमों का कोई असर ही नहीं दिखता है। बिना हेलमेट और जरूरी दस्तावेज बगैर ही गाड़ी चलाते कई नाबालिगों को देखा जा सकता है। 

एआरटीओ सियाराम वर्मा के मुताबिक, नींद, नशा व ओवरस्पीड की वजह से 65 फीसद सड़क हादसे हो रहे हैं। इन हादसों में बगैर हेलमेट व बिना सीट बेल्ट बांधे कार चलाना मौत की वजह बनती है। इसके अलावा हाईवे पर टी प्वाइंट व वाहन खड़े करने, रोड इंजीनियङ्क्षरग में खामी, जल्दबाजी में ओवरटेकिंग की वजह से हादसों की दर में इजाफा हो रहा है। 

कहां-कहां बेतरतीब खड़े होते हैं वाहन

यदि सिविल लाइंस को छोड़ दिया जाए तो कटरा, चौक, खुल्दाबाद, यूनिवर्सिटी रोड, ट्रैफिक चौराहा और कचहरी के पास लोग बेतरतीब ढंग से वाहन खड़ा कर चले जाते हैं। इसके अलावा नैनी, झूंसी और फाफामऊ में तो स्थिति और भी भयावह है। कई बार सड़क हादसों का कारण बेतरतीब ढंग से खड़े वाहन बनते हैं।  

कभी कभार ही चलता है अभियान

शहर में बेतरतीब ढंग से वाहन खड़े होने से लगने वाले जाम से निजात पाने के लिए कभी-कभार ही अभियान चलाया जाता है। नियमित अभियान नहीं चलने की वजह से शहर में जाम की स्थिति जस की तस बन जाती है। ट्रैफिक पुलिस को शहर को जाम से निजात दिलाने के लिए हर हफ्ते अभियान चलाना चाहिए। 

गति सीमा का करें पालन

खास तौर से नौजवानों में तेज गति से बाइक या कार चलाने का क्रेज हैं। यह हादसे का सबसे बड़ा कारण है। कच्ची उम्र में यह मनमानी मुसीबत में न डाल दे, इसका ख्याल सभी को रखना चाहिए। बाइक सवार की मौत से जुड़े ज्यादातर सड़क हादसों की वजह हेलमेट न पहनना और रफ्तार ही होती है।

एआरटीओ का है कहना 

सियाराम वर्मा, एआरटीओ का कहना है कि यातायात नियमों की अनदेखी और सुरक्षा मानकों के साथ खिलवाड़ की वजह ही चालकों के अलावा राहगीरों के लिए जानलेवा साबित होती है। जबकि इसमें राहगीरों की कोई गलती भी नहीं होती। ऐसे में यातायात नियमों के पालन को सर्वोच्च प्राथमिकता देना जरूरी है।