Cattle and farmers fair : कौशांबी के भदईं मेले में 50 हजार में बिकी रामआसरे की 'बसंती'
वर्ष 1961 से मूरतगंज मेला परिसर में भादो मास में हर वर्ष किसान व पशु मेला लगाया जा रहा है। मेला भादो माह में लगता है इसलिए यह भदई मेला के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रयागराज, जेएनएन। पडोसी जनपद कौशांबी में मूरतगंज मेला परिसर में हर वर्ष की भांति दो दिवसीय पशु व किसान मेले की शुरुआत मंगलवार से हुई। कोरोना की वजह से मेले में इस बार पहले जैसे रौनक नहीं दिखी। घोड़े, खच्चर, गधे को बेचने व खरीदने के लिए व्यापारी कम ही आए। पहले दिन कुल 30 घोड़े व खच्चर बेचे गए। सबसे महंगी घोड़ी मंझनपुर तहसील के वंश का पूरा निवासी रामआसरे की बसंती 50 हजार रुपये में बिकी। मध्य प्रदेश के छतरपुर निवासी अमर सिंह ने उसे मुंहमांगी रकम देकर खरीदा।
हर वर्ष लगता है भदई मेला
वर्ष 1961 से मूरतगंज मेला परिसर में भादो मास में हर वर्ष किसान व पशु मेला लगाया जा रहा है। मेला भादो माह में लगता है इसलिए यह भदई मेला के नाम से प्रसिद्ध है। इस मेले की शुरुआत प्रतापगढ़ के स्व. राणाप्रताप ने शुरू किया था। तभी से मेला हर वर्ष लग रहा है। यह मेला आसपास के जनपदों के साथ अन्य प्रदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। मध्य प्रदेश, बिहार, जम्मू, जालौन, झारखंड, हरियाणा के व्यापारी घोड़ा, गधे खच्चर को बेचने व खरीदने के लिए आते थे, लेकिन इस बार कोरोना की वजह से मेले में उम्मीद से भी कम व्यापारी आए हैं।
कोरोना के चलते हर वर्ष जैसा उत्साह नहीं
पशु मेला को लेकर क्षेत्रीय लोगों में खासा उत्साह रहता है। इस बार रौनक कम रही और बिक्री भी कम हुई। बाहर से आए व्यापारियों की रहने व खाने की व्यवस्था भी मेला प्रबंधक विजय यादव की ओर से की गई है। इससे व्यापारियों को काफी सहूलियत मिली। कोरोना अवधि में किसी मेले के आयोजन व भीड़ एकत्रित करने पर पाबंदी है। चायल एसडीएम ज्योति मौर्य का कहना है कि मेला लगाने के लिए अनुमति नहीं दी गई है, जबकि मेला प्रबंधक अनुमति लेकर आयोजन की बात कह रहे हैं।