पूर्व वाहिनी हुईं गंगा, कुंभ में ढाई दशक बाद बन रहा शुभ योग
1995 के बाद गंगा की धारा पूर्व की ओर से उन्मुख हुई है। इसे शुभ माना जा रहा है। ज्योतिर्विद कहते हैं कि यह शुभ संयोग करीब ढाई दशक बाद बन रहा है।
प्रयागराज (जेएनएन)। कुंभ में इस बार बहुत शुभ होने जा रहा है। गंगा पूर्ववाहिनी हो गई हैं। पूरब वाहिनी होना बेहद शुभ योग बन रहा है। खासतौर पर यह विघ्न विनाशक है। मेले में कोई विघ्न नहीं आएगा और न ही कोई बाधा उत्पन्न होगी। किसी प्रकार की कोई विपत्ति आने की आशंका को पतित पावनी ने अपने इस स्वरूप से पहले ही टाल दिया है।
1995 में गंगा का प्रवाह हुआ था पूरब वाहिनी
गंगा का यह प्रवाह वर्ष 1995 के कुंभ में हुआ था। इसके बाद अब गंगा पूरब वाहिनी हुई हैं। टीकरमाफी आश्रम के महंत स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मïचारी बताते हैं कि वर्ष 1965 के कुंभ मेले के दौरान गंगा बीच में बह रही थीं, इसलिए संगम बिल्कुल अरैल के सामने था। उस समय गंगा पश्चिम वाहिनी थीं। 1977 के कुंभ में भी गंगा पश्चिम वाहिनी थीं। इसके बाद 1982 के अद्र्धकुंभ में पूरब वाहिनी हो गई थीं। वर्ष 1989 के कुंभ में फिर पश्चिम वाहिनी हो गईं। वर्ष 1995 में गंगा की धारा बिल्कुल झूंसी की ओर मुड़ गई थी। तब गंगा पूरब वाहिनी हुई थीं। इसके बाद वर्ष 2019 के कुंभ में गंगा पूरब वाहिनी हो रही हैं।
ज्योतिर्विद कहते हैं बहुत शुभ है पश्चिम वाहिनी
ज्योतिर्विदियों का कहना है कि गंगा और यमुना बहनें हैं। प्रयाग में संगम पर जब बाढ़ का पानी कम होता है तभी गंगा की दिशा तय होती है कि वह पूरब की ओर जाकर यमुना से मिलेंगी अथवा पश्चिम की ओर से मिलेंगी। ज्यादातर गंगा पश्चिम वाहिनी ही होती रहीं हैं। गंगा पश्चिम वाहिनी होकर यमुना से मिलती रहीं हैं। इस बार गंगा पूरब वाहिनी हुई हैं तो संगम भी दूर हो चला है। हालांकि इससे बेहद शुभ योग बन रहा है।
कुंभ में सभी देवी-देवता विराजेंगे
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी का कहना है कि प्रमुख देवी-देवताओं का वास पूरब की दिशा में होता है। पश्चिम की दिशा में वरुण आदि देवता का वास होता है। ऋषि-मुनियों का दक्षिण की दिशा में निवास होता है। जबकि दक्षिण दिशा में यम और राक्षसों का निवास होता है। गंगा का पूरब वाहिनी होने से स्पष्ट है कि देवी-देवताओं का कुंभ में अवतरण होना है। तीर्थों के राजा प्रयागराज में इस बार के कुंभ में सभी देवी-देवता विराजमान होंगे। इसीलिए माना जा रहा है कि आस्था के इस कुंभ से भारत का अभ्युदय होगा। दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। मानव का कल्याण होगा। गंगा के पूरब वाहिनी होने से कुंभ के आयोजन में सब कुछ कुशल होगा। किसी प्रकार की अनिष्ट की आशंका बिल्कुल भी नहीं होगी। इससे सब कुछ शुभ ही होगा। दरअसल, यह जीवनदायिनी की स्नानार्थियों पर कृपा होगी। कुंभ के दौरान माघ मास में गंगा स्नान करने वालों को विशेष पुण्य लाभ होगा।
अभ्युदय का द्योतक है गंगा का पूरब वाहिनी होना
ज्योतिर्विद त्रिपाठी का कहना है कि पूर्व यात्रा का मतलब ही उन्नति और अभ्युदय है। यह इतना शुभदायक है कि जीवनदायिनी का प्रभाव पुण्य के रूप में रहेगा। पतित पावनी का यह स्वरूप ऐतिहासिक है। कुंभ के दौरान अक्सर गंगा पश्चिम वाहिनी हुआ करती थीं, मगर इस बार के कुंभ में त्रिगुणात्मिका शक्ति (गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्तवती) का पूर्वाविमुख प्रवाह होने से देश की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक और राजनैतिक स्थिति बहुत मजबूत होगी। गंगा में पुण्य की डुबकी लगाने वालों को ज्ञान प्रकाश का लाभ मिलेगा।
संगम नोज का बढ़ेगा क्षेत्रफल
गंगा के पूरब वाहिनी होने से कुंभ मेले का क्षेत्रफल भी बढ़ेगा। इससे तंबुओं की नगरी की बसावट भी ठीक तरीके से हो सकेगी। सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता मनोज कुमार सिंह का कहना है कि इससे संगम क्षेत्र वृहद होगा। संगम नोज पर काफी जगह मिल सकेगी जिससे स्नानार्थियों को डुबकी लगाने में सहूलियत मिल सकेगी। हालांकि गंगा का यमुना से मिलन झूंसी की ओर छतनाग के पास हो रहा है। यानी ऐतिहासिक किले के पास स्थित संगम नोज से करीब दो किमी आगे संगम पहुंच गया है। गंगा की धारा में इस तरह का बदलाव सामान्य बात है, लेकिन इस बार इसमें कुछ तेजी दिखी है।
श्रद्धालुओं को करनी पड़ेगी थोड़ी पदयात्रा
कुंभ के दौरान संगम स्नान के लिए प्रयाग पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालुओं को अब थोड़ी पदयात्रा करनी पड़ेगी। हालांकि झूंसी और अरैल की ओर से पहुंचना आसान होगा। गंगा के इस रुख से झूंसी और अरैल क्षेत्र में कल्पवास करने वालों को जरूर राहत मिलेगी। वैसे ज्यादातर लोग इन्हीं क्षेत्रों में कल्पवास करते हैं तथा बहुत से संत-महात्माओं को इन्हीं क्षेत्र में जगह भी दी जा रही है। संगम के खिसकने से तीर्थ पुरोहितों और नाविकों में भी उत्साह है। दरअसल, ज्यादा जगह मिलने से नाव चलाने में लाभ होगा।
गंगा की ही बदलती है धारा
जानकारों का कहना है कि संगम क्षेत्र में गंगा पूर्व वाहिनी होती हैं तो संगम शहर की ओर से दूर चला जाता है। अगर गंगा पश्चिम वाहिनी होती हैं तो वह शहर की ओर के तट की ओर आ जाती हैं। यमुना का प्रवाह स्थिर रहता है। गंगा की ही दिशा बदलती रहती है। सिंचाई विभाग बाढ़ प्रखंड के अधिशासी अभियंता मनोज कुमार सिंह ने बताया कि नरौरा, टिहरी बांधों तथा हरिद्वार व कानपुर बैराज से पानी छोड़ा जाता है तो धारा में परिवर्तन देखने को मिलता है।