Lockdown में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का हाल, AUCTA 'साहब' को कुर्सी से उतारने की जुगत में Prayagraj News
अब तो सीनेट हाल में चर्चा यही है कि जब सारे काम ऑनलाइन हो रहे हैं तो कार्य परिषद की बैठक ऑनलाइन करवाने में आखिर क्या हर्ज है।
प्रयागराज, [गुुरुदीप त्रिपाठी]। कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में बहुत कुछ ऑनलाइन हो गया है। इससे इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी अछूता नहीं है। कुलपति भी अब ऑनलाइन शिक्षा पर जोर दे रहे हैं। आखिर जोर क्यों न दें...। समय का चक्र ही कुछ ऐसा चला कि ऑनलाइन होना मजबूरी हो गया। इस बीच इलाहाबाद विश्वविद्यालय महाविद्यालय शिक्षक संघ (ऑक्टा) ने तो गजब की मांग कर डाली।
इशारों में साहब से कह दिया कि अब कुर्सी खाली कर दो
ऑक्टा ने इशारों में साहब से कह दिया कि अब कुर्सी खाली कर दो बहुत हो गया। कार्य परिषद की बैठक ऑनलाइन कराकर स्थायी कुलपति के चयन की मांग करने को और क्या कहा जा सकता है। साहब भी नाराज हो गए और सुरक्षा कर्मियों को हिदायत दे डाली कि ऑक्टा के पदाधिकारियों की बात दूर, उनकी मांगें भी दफ्तर में न घुसने पाएं। अब तो सीनेट हाल में चर्चा यही है कि जब सारे काम ऑनलाइन हो रहे हैं तो कार्य परिषद की बैठक ऑनलाइन करवाने में आखिर क्या हर्ज है।
...पर साहब कुर्सी तो नहीं छोड़ेंगे
ये पूरब का ऑक्सफोर्ड है साहब...। यहां मुखिया की कुर्सी पर बैठने के लिए रार छिडऩा कोई नई बात नहीं है। कुर्सी के चक्कर में शिक्षा के मंदिर को राजनीति का अखाड़ा बनने में भी देर नहीं लगी। इसका नमूना कश्मीरी साहब के जाने के बाद ही देखने को मिला। तभी तो यहीं के धुरंधरों के चलते कुर्सी को लेकर कुछ ऐसा हुआ कि महीने भर में कुर्सी ने भी तीन चेहरे देखे। बात अभी भी खत्म नहीं हुई है। इसी कारण कुर्सी को लेकर अघोषित द्वंद्व अब भी जारी है।
सब अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे
सब अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैैं कि उनका पलड़ा भारी हो जाए लेकिन पलड़ा भारी होने के लिए इनोवेशन भी तो दिखना चाहिए। कुछ नया करने के लिए ऑडियो संदेश जारी किया जाना, व्यवस्था को ऑनलाइन की पटरी पर लाने की कोशिश को भी उसी से जोड़कर देखा जा रहा हैै, क्योंकि मंत्रालय तो काम भी देखेगा।