अटल जी की अस्थियां संगम में प्रवाहित, उमड़ा जनसैलाब
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद: पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न, अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियां शनिवार दोपहर पवित्र संगम में प्रवाहित कर दी गईं। इससे पहले सर्किट हाउस में लोगों ने उनके अस्थिकलश पर पुष्प चढ़ा कर अपने श्श्रद्धासुमन अर्पित किए।
इलाहाबाद : पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न, अटल बिहारी वाजपेयी को शनिवार सुबह संगम नगरी में भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। सर्किट हाउस में हुई सर्वदलीय श्रद्धांजलि सभा में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी। बारिश के बावजूद लोग अपने प्रिय नेता के अस्थि कलश पर पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंचे। इनमें भाजपाई तो थे ही, अन्य दलों के पदाधिकारियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भी थे। अंतिम कलश यात्रा दोपहर बाद सर्किट हाउस से संगम के लिए रवाना हुई। यहां विधि विधान के साथ अस्थियों को गंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती की मिलन स्थली में विसर्जित किया गया।
सुबह से कभी तेज तो कभी रिमझिम बारिश के बीच लोगों का सर्किट हाउस पहुंचना शुरू हो गया था। सर्किट हाउस में प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी, प्रदेश के काबीना मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी, डा. रीता बहुगुणा जोशी, महापौर अभिलाषा गुप्ता नंदी के साथ साथ भाजपा के पदाधिकारियों -कार्यकर्ताओं ने अस्थि कलश पर पुष्प अर्पित किए। प्रशासन व पुलिस के अधिकारी भी इस मौके पर मौजूद थे। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल समेत अन्य नेताओं ने अटलजी से जुड़े संस्मरण को भी उपस्थित जनसमूह से साझा किया। जब कलश यात्रा संगम के लिए बड़ी तो वाहनों की कतार लगी थी। सर्किट हाऊस से संगम तक की दूरी करीब दो घंटे में तय हुई। अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए संगम पर घाट बनाया गया था। डिप्टी सीएम इत्यादि वीआइपी घाट से अस्थि कलश स्टीमर में रखकर संगम तक ले गए। विसर्जन से पहले संगम नोज पर वाटर प्रूफ पंडाल के नीचे श्रद्धाजलि सभा हुई। इससे पहले शुक्रवार को लखनऊ से अस्थि कलश यात्रा लालगोपालगंज पहुंची। वहा से कौशाबी होते हुए इलाहाबाद के सर्किट हाउस तक अस्थि कलश विशेष रूप से सजाए गए वाहन में लाया गया। इस दौरान पुष्पाजलि अर्पित करने वालों का ताता रहा। लखनऊ से प्रदेश के मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह, भाजपा के संगठन प्रदेश मंत्री अमर पाल मौर्य, कौशाबी सासद विनोद सोनकर अस्थि कलश यात्रा लेकर इलाहाबाद की सीमा में दाखिल हुए थे। तीन बजे प्रतापगढ़ के नवाबगंज इलाके की सीमा ब्रम्हौली पहुंची। वहा से आलापुर, मानिकपुर, कुंडा के भगवन तिराहा होते हुए इलाहाबाद की सीमा लालगोपालगंज पहुंची। यहा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में पुष्पाजलि अर्पित की गई।
सर्किट हाउस रोड पर नो इंट्री
सर्किट हाउस रोड पर शनिवार सुबह सात बजे से लेकर 10 बजे तक नो इंट्री थी। इंदिरा मूर्ति चौराहे से लेकर बाबा चौराहे के बीच किसी भी वाहन की आवाजाही नहीं होने दी गई। केवल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धाजलि अर्पित करने वाले ही जा पाए। जब अस्थिकलश यात्रा निकली तो अशोक नगर से लेकर संगम तक नो ट्रैफिक जोन था। इंदिरा मूर्ति चौराहा, साईधाम, पीएचक्यू चौराहा, धोबीघाट, लोक सेवा आयोग, ¨हदू हॉस्टल, इंडियन प्रेस, बालसन, गीता निकतेन, जीटी जवाहर, फोर्ट रोड चौराहे पर ट्रैफिक डायवर्ट किया गया था।
1968 में लाए थे दीनदयाल जी का कलश
यह महज संयोग ही कहा जा सकता है कि पाच दशक पूर्व अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष रहे दीनदयाल उपाध्याय जी की अस्थिया लेकर आए थे और विसर्जन करने संगम गए थे वह भी नंगे पैर। सामाजिक चिंतक व्रतशील शर्मा के अनुसार उन्होंने 1968 में अटल जी को जीवन में पहली बार देखा था। वह उस समय बड़े हनुमान जी के मंदिर के पास अपने पिताश्री पं. रमादत्त शुक्ल जी के साथ थे। काग्रेस के वरिष्ठ नेता श्याम कृष्ण पाडेय को अब भी याद है कि अटलजी सुबह की गाड़ी से पंडित दीनदयाल जी की अस्थिया लेकर आए थे। बताते हैं कि सबसे पहले महाजनी टोला स्थित मोतीमहल के संघ कार्यालय में अस्थिया ले जाई गईं। वहा डॉ. मुरली मनोहर जोशी, पूर्व संघ प्रमुख रज्जू भैया, अशोक सिंहल जैसे कद्दावर नेताओं ने उन्हें श्रद्धाजलि दी। फिर एक बड़े जुलूस के साथ अटल जी पैदल ही संगम की ओर चले। रास्ते में कई जगह पुष्पाजलि अर्पित की गई। संगम के किनारे एक सर्वदलीय शोकसभा का आयोजन हुआ, जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों, कई राजनीतिक दलों और प्रबुद्ध वर्ग के लोगों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। फिर जिला प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई मोटर बोट से अस्थियों को संगम में ले जाया गया और विसर्जन हुआ। प्रयागविद पंडित राम नरेश त्रिपाठी के मुताबिक अटल जी जनसंघ की पहली पीढ़ी के राजनीतिज्ञ रहे। जनसंघ का अंकुरण प्रयाग में हुआ था। प्रभु दत्त ब्रह्मचारी जी ने यहीं से गुरु गोलवलकर जी को पत्र लिखा था, जिसमें अटल जी जैसी प्रतिभाओं को राजनीति में जाने की छूट देने का आग्रह किया गया था, ताकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशासन में पले लोग राजनीति के माध्यम से समाज सेवा कर सकें।