इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने तैयार किया Aster Mushroom, कैंसर से भी लड़ने की है क्षमता Prayagraj News
कई रोगों की एक दवा है फूलों से तैयार अस्टर मशरूम। कैंसर से लड़ने की भी इसमें क्षमता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी के शोध छात्रों ने इजाद किया है।
प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। मशरूम तो पता ही है न। यहां जिस मशरूम की हम बात कर रहे हैं, वह कुछ दूजा किस्म का है। एक शोध में ऐसा मशरूम तैयार किया गया है, जो स्वाद और अच्छी सेहत देने के साथ ही डॉक्टरी भी करेगा। डॉक्टरी ऐसी कि कई बीमारियों के लिए दवा जैसा साबित होगा। यह शोध इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के सेंटर ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग के शोध छात्रों ने विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एमपी सिंह के निर्देशन में किया है।
मशरूम में मधुमेह व रक्तचाप के साथ ही कैंसर से लडऩे की क्षमता है
शोध में ढिंगरी प्रजाति का यह मशरूम छात्रों ने फूल और भूसे से तैयार किया है। प्रो. सिंह बताते हैैं कि ढिंगरी प्रजाति का मशरूम खुशबूदार और स्वादिष्ट होने के साथ पोषक तत्वों से भरपूर होता है। वसा व शर्करा कम होने के कारण यह मोटापे, मधुमेह व रक्तचाप से पीडि़त व्यक्तियों के लिए आदर्श आहार है। यह कैंसर से भी लडऩे की क्षमता रखता है। इसका रूप सीप के आकार का होने के चलते इसे अस्टर मशरूम के नाम से भी जाना जाता है।
शोध छात्र किसानों को बुलाकर मशरूम उत्पादन के अब टिप्स दे रहे
अस्टर मशरूम के बढिय़ा उत्पादन के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान और 80 से 90 प्रतिशत आद्र्रता होनी चाहिए। सोनम अग्रवाल, विवेक चतुर्वेदी, सुशील दुबे, हूमा वसीम, अंकिता कुशवाहा और अपराजिता तिवारी के संयुक्त शोधपत्र को अंतरराष्ट्रीय जर्नल सेलुलर एंड मॉलेकुलर बॉयोलॉजी ने प्रकाशित किया है। प्रयोगशाला में सफल परीक्षण के बाद शोध छात्र किसानों को बुलाकर मशरूम उत्पादन के अब टिप्स दे रहे हैं।
ऐसे कर सकते हैं उत्पादन
प्रयोगशाला में ढिंगरी मशरूम के उत्पादन के लिए मंदिरों के बाहर से फूल जुटाकर उसे सुखाया गया। उसके बाद भूसा लेकर उसे रातभर पानी में भिगोया गया। अगली सुबह भूसा छानकर 45 मिनट तक गर्म पानी में रखा गया। फिर छानकर इसमें बराबर मात्रा में सुखाया गया फूल मिलाया गया। इसके बाद मशरूम का बीज मिलाकर पॉलीथिन की थैलियों में भरकर उसका मुंह बांध दिया गया। नीचे आठ-दस छेद करके रख दिया गया। करीब 15 दिन बाद मशरूम उगने लगा।
10 रुपये में 200 का मुनाफा
प्रो. सिंह ने बताया कि एक किलोग्राम के बैग में 10 रुपये का खर्च आता है। तीन बार में एक बैग से करीब आठ सौ ग्राम मशरूम का उत्पादन होता है। यह मशरूम बाजार में 150 से 200 रुपये प्रतिकिलो बिकता है। कई जगह इससे भी महंगा बिकता है।
बड़े काम का होता है अपशिष्ट
मशरूम उत्पादन के बाद बैग भी बहुत काम का होता है। बैग में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक रहती है। इसका प्रयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है। इसके अलावा इसे चारे के साथ मवेशियों को खिलाने पर दूध की गुणवत्ता में सुधार के साथ दूध भी अधिक होता है। यह दावा प्रो. सिंह ने किया है।