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नवजात शिशुओं पर भी बेअसर हो रहीं हैं एंटीबायोटिक दवाएं Prayagraj News

एंटीबायोटिक का सेवन इसी तरह से होता रहा हो तो एक समय ऐसा भी आएगा जब एंटीबायोटिक दवाएं बीमारी दूर करने में कारगर नहीं होंगी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 31 Mar 2020 05:07 PM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2020 05:07 PM (IST)
नवजात शिशुओं पर भी बेअसर हो रहीं हैं एंटीबायोटिक दवाएं Prayagraj News
नवजात शिशुओं पर भी बेअसर हो रहीं हैं एंटीबायोटिक दवाएं Prayagraj News

प्रयागराज,जेएनएन। अगर आपको लग रहा है कि एंटीबायोटिक दवाएं आपका दर्द फौरन हर लेंगीं तो यह खबर पढि़ए। अधिकांश एंटीबायोटिक दवाएं अब सिर्फ अधिक उम्र के लोगों पर ही नहीं, बल्कि नवजात पर भी बेअसर हो रही हैैं। यानी इनमें यह दवाएं जन्म से पहले मां के गर्भ में ही मिल जा रही हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि नवजात पर जन्म के तुंरत बाद लो एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही हैं। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलाजी डिपार्टमेंट की ओर से हुए एक सर्वे में इस बात की पुष्टि हुई है।

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मां के गर्भ से ही शिशुओं के शरीर में पहुंच जाती है एंटीबायोटिक

दुनिया भर में बैक्टीरिया मारने वाले एंटीबायोटिक की क्षमता कम हो रही है। पहले कभी आम संक्रमण के लिए जो एंटीबायोटिक कारगर साबित होती थीं, वह अब बेअसर हो गई हैैं। एंटीबायोटिक का सेवन इसी तरह से होता रहा हो तो एक समय ऐसा भी आएगा जब एंटीबायोटिक दवाएं बीमारी दूर करने में कारगर नहीं होंगी। इतना ही नहीं चौंकाने वाली बात तो यह है नवजात भी इसकी गिरफ्त में है और मां के गर्भ से ही उनके शरीर में इतनी एंटीबायोटिक पहुंच चुकी होती है कि उनमें जन्म के बाद ही तीन जेनरेशन की एंटीबायोटिक असर नहीं कर रही हैं। ऐसे में उन्हें भी चौथे जेनेरेशन की एंटीबायोटिक दवाएं दी जा रही हैैं ताकि बैक्टीरिया मर सकें। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अरिंदम चक्रवर्ती एंटीबायोटिक का अधिक सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जिन नवजात पर सर्वे हुआ है, उनमें पहले ही एंटीबायोटिक मां के जरिए पहुंच चुका है। बैक्टीरिया को मारने के लिए चौथे जेनरेशन की एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत पड़ी है। एंटीबायोटिक दवाओं का गलत और ज्यादा उपयोग हमारे शरीर के लिए घातक साबित हो सकता है।

चिल्ड्रेन अस्पताल में 40 बच्चों पर सर्वे

एमएलएन मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलाजी डिपार्टमेंट की ओर से सरोजनी नायडू चिल्ड्रेन अस्पताल में 40 नवजात पर सर्वे किया गया। इन बच्चों का स्टूल कल्चर टेस्ट किया गया। इस टेस्ट की मदद से दो बातें पता चलीं। एक तो बैक्टीरिया के उन प्रकारों की जानकारी हुई जो रोग का कारण बनते हैं और यह पता चला कि इन बैक्टीरिया को किस एंटीबायोटिक से मारा जा सकता है? इसमें यह बात सामने आई कि इन सभी बच्चों में लो पावर की एंटीबायोटिक बेअसर हो चुकी है। यानी, मां के जरिए इनमें पहले ही एंटीबायोटिक पहुंच चुका है।


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