Allahabad University : पत्राचार संस्थान के कर्मचारियों को मिली राहत, बंद है विश्वविद्यालय का यह संस्थान
Allahabad University इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के पत्राचार संस्थान पूर्व कुलपति प्रोफेसर रतन लाल हांगलू के आदेश पर बंद कर दिया गया था। यहां के कर्मचारियों का वेतन व ईपीएफ का रुपया फंस गया था। हालांकि अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें राहत दी है।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के पत्राचार संस्थान तो बंद है। पूर्व कुलपति प्रोफेसर रतन लाल हांगलू के निर्देश पर रजिस्ट्रार प्रोफेसर एनके शुक्ल ने छह सितंबर 2016 को नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके तहत शैक्षिक सत्र 2016-17 से पत्राचार संस्थान की सभी शैक्षिक गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। इसके बाद से संस्थान में कोई प्रवेश नहीं लिया गया।
संस्थान को खोलवाने के लिए कर्मचारी लड़ाई भी लड़ रहे हैं। हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण काल में इविवि प्रशासन ने इन कर्मचारियों को कुछ राहत दी है। अब अब यहां के कर्मी अपने कंट्रीब्यूट्री प्रोविडेंट फंड (सीपीएफ) की धनराशि को निकाल सकेंगे। इसके लिए कर्मचारियों को दस्तावेज जमा करने को कहा गया है। इसका सत्यापन किए जाने के बाद कर्मचारियों के सीपीएफ का भुगतान किया जाएगा। कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर आरआर तिवारी के निर्देश पर रजिस्ट्रार प्रोफेसर एनके शुक्ल ने तकरीबन नौ करोड़ रुपये के भुगतान किए जाने का आदेश जारी कर दिया है। इसके लिए पत्राचार संस्थान के सभी कर्मचारियों से आवेदन मांगे गए हैं।
संस्थान के कर्मचारियों ने याचिका दाखिल की थी
उधर संस्थान के कर्मचारियों की ओर से दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट ने मई 2018 में रजिस्ट्रार के रोक संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया था। संस्थान की सहायक निदेशक रेखा सिंह की ओर से दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट ने वेतन-भत्ते का भुगतान करने के आदेश दिए थे। इविवि ने हाईकोर्ट के इस आदेश का अनुपालन करने के बजाए हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
कर्मियों का 30 करोड़ रुपये वेतन के अलावा सीपीएफ फंस गया था
एसएलपी खारिज होने के बाद इविवि की ओर से दाखिल पुनर्विचार याचिका भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। इसी बीच पिछले वर्ष 26 जुलाई को हुई कार्य परिषद की बैठक में परिषद के सदस्यों के विरोध के बाद भी संस्थान को बंद करने का निर्णय ले लिया गया था। इस विवाद के चलते कर्मचारियों का तकरीबन 30 करोड़ रुपये वेतन के अलावा सीपीएफ फंस गया था। कर्मचारियों ने कई बार कार्यवाहक कुलपति से मिलकर बकाया वेतन का भुगतान और उन्हें इविवि में समायोजित किए जाने की मांग की।