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छात्रसंघ को फिर से बैन कर सकता है इविवि

केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद यहां छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगी थी। छात्रनेताओं ने आंदोलन किया था। हालांकि हिंसक घटनाएं नहीं रुक रही हैं। अब फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी बैन लगा सकता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 09:06 PM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2019 11:04 AM (IST)
छात्रसंघ को फिर से बैन कर सकता है इविवि
छात्रसंघ को फिर से बैन कर सकता है इविवि

प्रयागराज : इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ पर फिर से बैन लग सकता है। विगत हिंसक घटनाओं को देखते हुए विश्वविद्यालय इसपर गंभीरता से विचार कर रहा है। अंदरखाने इसकी पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है।

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केंद्रीय विवि बनने के बाद छात्रसंघ चुनाव पर लगा था बैन

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ का चुनाव लड़ रहे महामंत्री पद के प्रत्याशी कमलेश यादव की 2003 की हत्या के बाद शहर में हिंसा फैल गई थी। इसके बाद छात्रसंघ चुनाव पर बीच-बीच में खून के छींटे पड़ते रहे हैं। 2005 में केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद छात्रसंघ चुनाव पर बैन लगा दिया गया। इसके बाद छात्रसंघ चुनाव की बहाली को लेकर अभिषेक यादव, राघवेंद्र यादव, दिनेश यादव, विवेकानंद पाठक जैसे छात्रनेताओं ने लंबा संघर्ष किया। इसके बाद 22 दिसंबर 2011 को छात्रसंघ चुनाव बहाल हो गया था। बैन के बाद 2012-2013 में छात्रसंघ चुनाव हुआ। इसके बाद भी हिंसक घटनाएं जारी रहीं। अभी हाल ही में छात्रनेता अच्युतानंद शुक्ला की कैंपस में हत्या भी एक ताजा उदाहरण है।

पिछले 20 सालों में छात्रसंघ के खाते में महत्वपूर्ण उपलब्धि नहीं

यदि पिछले 20 सालों के छात्रसंघ को देखें तो कोई भी महत्वपूर्ण उपलब्धि नजर नहीं आती है। छात्रसंघ का चुनाव लड़ चुके कई पदाधिकारी आज 25 हजार के इनामी घोषित हैं। हाल के दिनों में सुमित शुक्ला हत्याकांड में भी छात्र राजनीति का काला चेहरा उजागर हुआ था। दो साल पहले ताराचंद छात्रावास के सामने एक छात्र नेता राजेश यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।  इलाहाबाद शहर के कई व्यापारी और कोचिंग चलाने वाले संस्थान के निदेशक भी विश्वविद्यालय के छात्रसंघ की गतिविधियों से काफी नाराज बताए जाते हैं। चुनाव के समय उनसे जबरन चंदा वसूलने का आरोप छात्रसंघ पर लगता रहा है।

उद्देश्य से भटका इविवि छात्रसंघ!

विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के संविधान में जो उद्देश्य निर्धारित किए गए थे वे काफी पीछे छूट गए हैं। आज छात्रसंघ गुटबाजी और दबदबे का पर्याय बन चुका है। उत्तर भारत के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय। काशी ङ्क्षहदू विद्यापीठ में छात्रसंघ नहीं है। ऐसे में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ को लेकर चारों ओर एक नकारात्मक माहौल बन रहा है। अभी हाल के दिनों में छात्रसंघ चुनाव के दौरान कई दिनों तक ताबड़तोड़ गोलीबारी हुई और बम चले। पिछले साल भी चुनाव के दौरान ऐसी ही घटनाएं हुई थी।

शैक्षणिक और अकादमी कार्यों को बढ़ावा देने में असफल

छात्रसंघ पिछले दो दशकों में किसी भी शैक्षणिक और अकादमी कार्यों को बढ़ावा देने में असफल रहा है। ऐसा लगता है कि छात्र राजनीति सत्ता के बड़े लोगों तक पहुंचने का एक जरिया बन गई है। ऐसे में छात्रसंघ की कितनी उपयोगिता है इसको लेकर  अंदर ही अंदर गंभीर प्रश्न शुरू हो गए हैं।


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