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Allahabad University : छात्रसंघ भवन भी यादों को समेटे है, यहां से होकर कई कद्दावरों ने संसद तक का किया सफर

Allahabad University अगर इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्रसंघ माने सियासी सूरमाओं की पावन गंगोत्री कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्‍योंकि यहां की छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले दिग्‍गज नेताओं ने संसद तक का भी सफर तय किया है। वहीं कई क्षेत्रों में भी नाम रोशन किया है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 12:46 PM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 04:08 PM (IST)
Allahabad University : छात्रसंघ भवन भी यादों को समेटे है, यहां से होकर कई कद्दावरों ने संसद तक का किया सफर
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक छात्रभवन। यह अपनी गरिमा की पहचान है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का तो नाम रहा ही है। विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन की भी उपलब्धि कम नहीं है। यह भी एक पावन गंगोत्री के समान है। यही वह द्वार है, जहां से देश के तमाम सियासतदां निकले और संसद, सत्ता व न्यायपालिका के शीर्ष पदों तक पहुंचे। इस छात्रसंघ का इतिहास 96 बरस का है और इसमें 87 बार मतदान हुआ। इविवि में 1923 में छात्रसंघ चुनाव की परंपरा शुरू हुई। उस समय प्रवेश के समय ही शिक्षण शुल्क के साथ यूनियन का सदस्यता शुल्क जमा करा लिया जाता था। प्रत्येक छात्र को अनिवार्य रूप से सदस्य बनाया जाता था।

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यूनियन पदाधिकारियों के होते थे तीन सत्र

स्टूडेंट यूनियन की स्थापना से लेकर 1936-37 के सत्र तक इसके (यूनियन के) पदाधिकारियों के तीन सत्र होते थे। प्रति चार माह पर चुनाव हुआ करता था। शैक्षिक सत्र 1938-39 से एक वर्ष में  छह-छह माह पर चुनाव होने लगा। यह व्यवस्था 1953-54 तक चली। वर्ष 1954-55 से यूनियन के पदाधिकारियों का कार्यकाल एक वर्ष हो गया। इसके कुछ समय बाद 31 अगस्त को प्रतिवर्ष छात्रसंघ का चुनाव कराने की तिथि निश्चित की गई। 20 जुलाई को निर्वाचित पदाधिकारियों का कार्यकाल खत्म हो जाता था।

1942 में भंग हुई थी विश्वविद्यालय की यूनियन

इविवि छात्रसंघ अथवा स्टूडेंट यूनियन का इतिहास यादगार पन्नों से भरा है। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय स्टूडेंट यूनियन के तत्वावधान में भी ब्रिटिश हुकूमत का विरोध हुआ। इसलिए तत्कालीन शासकों के निर्देश पर यूनियन भंग कर दी गई। इसके बाद नारायण दत्त तिवारी ( उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री) के नेतृत्व में छात्रसंघ के लिए आंदोलन शुरू हुआ। 1945-46 में चुनाव प्रक्रिया दोबारा शुरू हुई।

छह साल चुनाव नहीं हुए

1923 से शैक्षिक सत्र 2005-2006 की अवधि में इलाहाबाद विश्वविद्यालय यूनियन के लिए पदाधिकारियों के चुनाव 80 बार हुए थे। 2005 में केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद छात्रसंघ चुनाव पर प्रतिबंध लगा। इस तरह वर्ष 2005 से 2011 तक छह साल छात्र संघ चुनाव हुए ही नहीं। वर्ष 2011 में छात्र परिषद लागू करने का फैसला लिया गया। इसका भी मुखर विरोध हुआ और अंतत: विश्वविद्यालय प्रशासन को झुकना पड़ा। इसी साल 22 दिसंबर को छात्रसंघ बहाली की घोषणा की गई।  2012 में फिर से छात्रसंघ वजूद में आया और सात साल चुनाव होते रहे।


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