कुंभनगरी प्रयागराज धार्मिक दृष्टि से दुनिया का प्राचीनतम स्थल
कुंभनगरी प्रयाग धार्मिक दृष्टि से दुनिया का प्राचीनतम स्थल है। पतित पावनी गंगा व यमुना की धाराओं के तीरे बसे तीर्थराज प्रयागराज की महिमा अपरंपार है।
इलाहाबाद (जेएनएन)। कुंभनगरी प्रयाग धार्मिक दृष्टि से दुनिया का प्राचीनतम स्थल है। पतित पावनी गंगा व यमुना की धाराओं के तीरे बसे तीर्थराज प्रयागराज की महिमा अपरंपार है। वेद-पुराणों में इसकी महिमा का काफी गुणगान है। प्रयाग अर्थात प्र+याग यानी यज्ञों की बाहुल्यता का स्थल जहां अत्यधिक यज्ञ होते हैं। परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण से पूर्व प्रयाग की पावन धरा पर यज्ञ किया था। यज्ञ के बाद उन्होंने सृष्टि का निर्माण किया। ब्रम्हा जी ने यज्ञ किया तो सारे देवी-देवता इसके साक्षी बने। प्राचीनकाल में प्रयाग महर्षि भारद्वाज के साथ अनेक ऋषियों की तपोभूमि रहा है। मानव तो दूर, यह पावन भूमि देवताओं को भी अपनी ओर आकर्षित करती रही है।
गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती
ऋग्वेद में कहा कि है कि गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन संगम में स्नान करने से इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मत्स्य पुराण में तीर्थराज का दर्शन, कीर्तन, स्पर्श मुक्तिदायक बताया गया है, जबकि रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने प्रयागराज की महिमा का बखान... को कहि सकई प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।.. के रूप में किया है।
माधव12 रूपों में विराजमान
मत्स्य पुराण के अनुसार कल्प के अंत में शिव द्वारा सृष्टि का विनाश करने पर भी प्रयागराज का नाश नहीं होगा। पुराणों में संगम का विस्तार 80 हाथ या 1920 अंगुल बताया गया है। दुनिया में प्रयागराज ही एकमात्र ऐसा स्थल है जहां माधव अलग-अलग क्षेत्रों में 12 रूपों में विराजमान हैं, जिनके दर्शन मात्र से साधक को सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है। माधव के मंदिर सदियों से हर किसी की आस्था का केंद्र हैं।
नगर कोतवाल हैं हनुमान
प्रयाग के नगर देवता द्वादश माधव में एक भगवान वेणी माधव हैं। दारागंज में वेणी माधव का प्राचीन मंदिर है, जबकि नगर के कोतवाल खुद संकटमोचन महावीर हनुमान हैं। बांध स्थित लेटे हनुमान जी का हृदय से स्मरण करना कल्याणकारी होता है।
प्रलय रोकने को नाग रक्षित
प्रयागराज दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्मस्थल है जिसकी रक्षा स्वयं नाग करते हैं। यहां आने वाले प्रलय को रोकने के लिए कंबल व अश्वतर नामक नाग गंगा व यमुना में विराजमान हैं। गंगा तट पर कंबल व यमुना घाट पर अश्वतर नामक नाग विराजमान हैं, जबकि भगवान विष्णु खुद त्रिवेणी के पावन जल में विराजमान हैं।
बालरूप में विष्णु अक्षयवट
भगवान विष्णु अक्षयवट में विराजमान हैं। यमुना तट पर स्थित किला के अंदर अक्षयवट का प्राचीन वृक्ष है। यहां विष्णु बालरूप में शयन करते हैं, इसका जिक्र भागवत पुराण में है। विष्णु प्रयागराज के साथ पूरी धरती के प्रहरी माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि धरती पर प्रलय आने पर भी अक्षयवट की कोई क्षति नहीं होती।
अति प्राचीन स्थल
प्रयाग विद्वत परिषद के अध्यक्ष डॉ. रामनरेश त्रिपाठी ने बताया कि प्रयागराज में वैसे तो कई स्थल हैं परंतु कुछ ऐसे स्थल हैं जो प्राचीनकाल से हर किसी की आस्था का केंद्र हैं। इन तीर्थों में उवर्शी तीर्थ, तपोकुंड, इंद्रवन, छतनाग, शंखनाग, शंख माधव, बल्लभाचार्य की बैठक, सूर्यटंकेश्वर मंदिर, द्वादश माधव, पडि़ला महादेव शामिल हैं। इनके अलावा मां अलोपशंकरी, मां कल्याणी देवी व मां ललिता देवी का प्राचीन मंदिर आराधना का प्रमुख केंद्र है।