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Allahabad High Court ने महत्‍वपूर्ण निर्णय, कहा- जन्‍म देने वाले माता-पिता कौन हैं, यह जानने का बच्‍चे को है अधिकार

इलााबाद हाई कोर्ट ने मामा-मामी के साथ रह रही बच्ची की अभिरक्षा जन्म देने वाले माता-पिता को सौंपने का निर्देश दिया। साढ़े तीन वर्ष की उम्र में मामा-मामी उसका लालन-पालन कर रहे थे। जब मां उससे मिलने आई तो उसे बच्ची से मिलने नहीं दिया गया था।

By JagranEdited By: Brijesh SrivastavaPublished: Tue, 27 Sep 2022 02:18 PM (IST)Updated: Tue, 27 Sep 2022 02:18 PM (IST)
Allahabad High Court ने महत्‍वपूर्ण निर्णय, कहा- जन्‍म देने वाले माता-पिता कौन हैं, यह जानने का बच्‍चे को है अधिकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बच्‍चे के अधिकार से संबंधित महत्‍वपूर्ण निर्णय दिया है।

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मानव होने के नाते बच्चे को जानने का अधिकार है कि उसे जन्म देने वाले माता-पिता कौन है। उसे यह भी अधिकार है कि वह अपने भाई बहन के साथ पारिवारिक वातावरण में बड़ा हो। साथ ही बच्चे का यह भी विधिक अधिकार है कि वह बालिग होने तक जन्म देने वाले माता-पिता के संरक्षण में रहे। उसे अपनी वास्तविक पहचान जानने का प्रथम अधिकार है। साथ ही यह भी जानने का अधिकार है कि उसका पालन-पोषण किसने किया है।

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जानें क्‍या है पूरा मामला : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा ही अधिकार गोद लिए गए बच्चे का भी है। बच्चे को उसके कानूनी अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसी के साथ कोर्ट ने मामा-मामी के साथ रह रही पांच वर्षीय बच्ची की अभिरक्षा जन्म देने वाले माता-पिता को सौंपने का निर्देश दिया है। साढ़े तीन साल की उम्र में मामा मामी उसका लालन पालन कर रहे थे।जब मां उससे मिलने आई तो उसे बच्चे से मिलने नहीं दिया तो कोर्ट की शरण ली।

कोर्ट ने कहा बच्चे का सर्वांगीण विकास जन्म देने वाले मां बाप के सान्निध्य में ही हो सकता है।

यह फैसला न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति साधना रानी ठाकुर की खंडपीठ ने नसरीन बेगम वह मोहम्मद सज्जाद की अपील पर दिया है।

कोर्ट ने परिवार अदालत अलीगढ़ से कहा : कोर्ट ने कहा है कि परिवार अदालत अलीगढ़ मामा-मामी के साथ रह रही बच्ची को उसके नैसर्गिक माता-पिता को सौंपने की कार्यवाही एक माह पूरी करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोर्ट बच्चे का हित देखेगी। ऐसा उसकी इच्छा के विपरीत भी किया जा सकता है। बच्चे की इच्छा उसके भले के लिए कोई मायने नहीं रखती।

मामा-मामी मुलाकात कर सकते हैं : कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब भी माता-पिता देश में आएं या वर्ष में एक या दो बार मामा-मामी को बच्चे के साथ मुलाकात करने दिया जाए। प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद निसंतान थे। एक रिश्तेदार के बच्चे को लिया था लेकिन वह उठा ले गए। उनके दुख को देखते हुए नसरीन बेगम बहन ने साढ़े तीन वर्ष की बच्ची दे दी। वे विदेश चले गए। जब भारत आते तो उन्हें बच्चे से मिलने नहीं दिया गया। तो परिवार अदालत गई। अदालत ने बच्ची को जन्म देने वाली मां को सौंपने से इंकार कर दिया। इसी आदेश के खिलाफ अपील दाखिल की गई थी।


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