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Habeas Corpus: बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लिए निरुद्धि अवैध होना जरूरी, Allahabad High Court ने कहा

हाई कोर्ट ने चार साल के बेटे पार्थ को उसके पिता की अवैध निरुद्धि से मुक्त कराने की मांग वाली मां द्वारा दाखिल याचिका खारिज कर दी है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने दिया है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Tue, 28 Sep 2021 02:21 PM (IST)Updated: Tue, 28 Sep 2021 02:21 PM (IST)
Habeas Corpus: बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लिए निरुद्धि अवैध होना जरूरी, Allahabad High Court ने कहा
पिता के कब्जे से बेटे की मुक्ति की मांग में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका विशेष स्थिति में ही जारी की जा सकती है। इसके लिए अवैध निरुद्धि होना आवश्यक है। जब निरुद्धि वैध है या अवैध, जांच का विषय हो तो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी करने से इंकार किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति से पति-पत्नी में तलाक हुआ। परिवार न्यायालय के आदेश से स्पष्ट नहीं कि बच्चा मां के साथ रहेगा। ऐसे में यदि पिता बच्चे को अपने साथ ले गया है तो गार्जियन एंड वार्ड एक्ट के तहत सिविल कोर्ट से अभिरक्षा की मांग की जा सकती है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी नहीं की जा सकती।

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एफआइआर के तीन माह बाद दाखिल की याचिका

हाई कोर्ट ने चार साल के बेटे पार्थ को उसके पिता की अवैध निरुद्धि से मुक्त कराने की मांग वाली मां द्वारा दाखिल याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने दिया है। याची का कहना था कि पति-पत्नी में विवाद के कारण आपसी सहमति से प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय फिरोजाबाद ने तलाक मंजूर कर लिया और सहमति बनी थी कि बेटा मां के साथ ही रहेगा। जब वह घर से बाहर थी, पिता बेटे को जबरन उठा ले गया। सरकारी वकील ने कहा कि अपहरण की एफआइआर दर्ज कराई गई है। याची ने स्वयं ही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका तीन माह बाद दाखिल की है। वह बच्चे की अभिरक्षा के लिए सिविल कोर्ट जा सकती है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है। कोर्ट ने हस्तक्षेप से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है।

एसोसिएट प्रोफेसर की बर्खास्तगी पर रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साइंस एंड सोसाइटी विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डा. रोहित कुमार मिश्र की बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगा दी है। साथ ही उन्हें काम करने देने व वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने दिया है। याची का कहना है कि 17 अगस्त 2021 को उसके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। न तो किसी प्रक्रिया का पालन किया गया न ही उसे अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया। याची पर आरोप है कि वह पद की अर्हता के अनुरूप अनुभव व योग्यता नहीं रखता है। इस पर कोर्ट ने 17 अगस्त का आदेश रद्द करते हुए विश्वविद्यालय से कहा है कि यदि भविष्य में याची के विरुद्ध कोई आदेश पारित होता है तो वह विधि अनुसार होना चाहिए और याची को सुनवाई का अवसर देते हुए उसकी सफाई पर विचार करने के बाद ही कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने कहा कि जिन दस्तावेजों के आधार पर याची के विरुद्ध कार्रवाई की गई है उसे याची को उपलब्ध कराया जाए।


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