Allahabad High Court ने DNA Test को लेकर दिया अहम फैसला, यहां पढ़ें कि हाई कोर्ट ने क्या कहा
Allahabad High Court ने कहा कि सवाल है क्या डीएनए जांच जीवन व निजता के अधिकार का उल्लघंन है। डीएनए की रुटीन जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता लेकिन जहां संदेह से परे अभियोजन का प्रश्न हो तो न्याय हित में डीएनए जांच का आदेश दिया जा सकता है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने डीएनए जांच (DNA Test) संबंधी महत्वपूर्ण आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि डीएनए जांच जीवन की निजता का अधिकार है। रूटीन में जांच का निर्देश नहीं दिया जा सकता। यदि न्याय हित में संदेह से परे अभियोजन के लिए प्रथम दृष्टया केस होने पर डीएनए जांच कराई जा सकती है।
मथुरा के अपर सत्र न्यायाधीश के आदेश को हाई कोर्ट ने रद किया : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपर सत्र न्यायाधीश मथुरा के डीएनए जांच की मांग को निरस्त करने के आदेश को विधि विरुद्ध करार देते हुए रद कर दिया है। साथ ही कोर्ट ने शिकायतकर्ता या मृतका के परिवार के सदस्य का रक्त सैंपल लेकर घटनास्थल से खून की डीएनए जांच एक माह में कराने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने मोहन सिंह की याचिका पर दिया है।
क्या है मामला : याची और टिक्की आपस में झगड़ रहे थे। शिकायतकर्ता की मां सिटी मार्केट खरीदारी करने गई थी। झगड़ा शांत करने के लिए बीचबचाव किया। याची ने गाली देते हुए गोली मार दी, जिससे मौत हो गई। 21 जून 2012 में कोशी कला थाने में एफआइआर दर्ज की गई। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। गवाही भी हुई।
अपर सत्र अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई : याची ने धारा 233 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अर्जी दाखिल कर पीड़िता के परिवार का ब्लड सैंपल लेकर डीएनए जांच के लिए फोरेंसिक लैबोरेटरी भेजने का आदेश देने की मांग की। कहा कि जमीन पर गिरे खून से परिवार का खून मैच कराया जाए। अपर सत्र अदालत ने 11अक्टूबर 21 को अर्जी खारिज कर दी, जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
हाई कोर्ट ने कहा- न्याय हित में डीएनए जांच का दिया जा सकता है आदेश : कोर्ट ने कहा स्थापित सिद्धांत है कि कोई भी निर्दोष सजा न पाए, भले ही 10 अपराधी छूट जाएं। याची का दावा है कि डीएनए जांच हुई तो वह निर्दोष साबित होगा। कोर्ट ने कहा कि सवाल है क्या डीएनए जांच जीवन व निजता के अधिकार का उल्लघंन है। अशोक कुमार केस के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि डीएनए की रुटीन जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता, लेकिन जहां संदेह से परे अभियोजन का प्रश्न हो तो न्याय हित में डीएनए जांच का आदेश दिया जा सकता है।