इक वो भी चुनाव था : सत्यप्रकाश मालवीय
250 रुपये में बन गया महापौर
इलाहाबाद : हमारे समय में महापौर जनता नहीं बल्कि सभासद चुनते थे। सभासद जिसे चाहते थे वही महापौर की कुर्सी पर बैठता था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है चुनाव आसान था, बल्कि तब महापौर बनना काफी कठिन था। तरह-तरह की गुणा-गणित करने के साथ प्रचार-प्रसार पूरे जोर-शोर से होता था। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं पहला ऐसा व्यक्ति हूं जो सभासद रहते हुए महापौर बना। महापौर के चुनाव में मैंने भी वोटिंग की थी। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए मैंने दिन-रात संपर्क किया। महीनों चले चुनाव में प्रचार में मेरा सिर्फ 250 रुपये ही खर्च हुआ, वह भी पेट्रोल में। जहां जाता वहीं चाय-नाश्ता भी हो जाता था, इसलिए खाने-पीने में कुछ नहीं खर्च हुआ।
मैं सन 1970 में महामना मालवीयनगर वार्ड का सभासद चुना गया। इसके बाद 1972 में महापौर का चुनाव था। मैं संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का प्रत्याशी बना। मेरे खिलाफ जनसंघ से डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेता थे। उनके अलावा कांग्रेस से अमरेश कुमार बनर्जी मैदान में थे। उस समय शहर में 60 वार्ड थे। मेरी पार्टी के सात सभासद थे, मुस्लिम मजलिस पार्टी के दस व हिंदू महासभा के छह सभासदों ने मुझे समर्थन दिया था जबकि 12 सभासद निर्दलीय थे। सभासद होने के नाते मेरा सबसे अच्छा संबंध था। लेकिन चुनाव के समय सबसे संपर्क तो करना ही पड़ता था। इसलिए भागदौड़ काफी बढ़ गई थी। संपर्क के दौरान ही मेरा कई बार डॉ. जोशी से आमना-सामना हुआ, उस समय हम एक-दूसरे के चुनाव की तैयारी के बारे में पूंछते थे। फिर अपने-अपने मिशन में आगे बढ़ जाते। वोटिंग के दिन राजनारायण जी मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आए थे। जब मैं विजयी हुआ तो उन्होंने सभा को संबोधित भी किया था। महापौर बनने के बाद मैंने साइकिल में लग रहे तीन रुपये कर को सबसे पहले समाप्त किया था, क्योंकि वह आम आदमी का साधन थी। इसके अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा और सफाई के लिए काफी काम किया था। एक साल के कार्यकाल के दौरान मैंने वह सब करने की कोशिश की जो आम जनता की जरूरत थी, इसका सिलसिला जब मंत्री बना तब भी जारी रहा।
-सत्यप्रकाश मालवीय
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