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Magh Mela 2021: पंडालों में बह रही रामकथा की बयार, संत-महात्‍मा कर रहे हैं प्रवचन

रामकथा प्रवचन में श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर यति सम्राट अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरू स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि उपनिषद् के सार तत्व को वेदान्त कहते हैं | ज्ञान भक्ति और अपने सम्पूर्ण कर्मों में श्री भगवान की शरणागति का भाव--यही उपनिषदों का मथितार्थ है |

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Fri, 26 Feb 2021 04:30 PM (IST)Updated: Fri, 26 Feb 2021 04:30 PM (IST)
Magh Mela 2021: पंडालों में बह रही रामकथा की बयार, संत-महात्‍मा कर रहे हैं प्रवचन
स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि उपनिषद् के सार तत्व को वेदान्त कहते हैं |

प्रयागराज,जेएनएन। माघ मेले में हर भक्ति भाव में डूबे भक्‍त और संत महात्‍मा नजर आते हैं। पंडालों में रामकथा की बयार गूंज रही है। संत महात्‍मा के पंडालों में चल रही रामकथा में बड़ी संख्‍या रामकथा सुनने के लिए जुट रहे हैं।

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उपनिषद के सार तत्‍व को वेदांत कहते हैं

मेला क्षेत्र में चल रही रामकथा प्रवचन में  श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर यति सम्राट अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरू स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि उपनिषद् के सार तत्व को वेदान्त कहते हैं | ज्ञान, भक्ति और अपने सम्पूर्ण कर्मों में श्री भगवान की शरणागति का भाव--यही उपनिषदों का मथितार्थ है | ज्ञान का अर्थ प्रचुर अध्ययन से होने वाला गम्भीर आध्यात्मिक ज्ञान नहीं, अपितु अनुभव तथा गुरुजनों के उपदेश एवम् आचरण  पर ध्यान देने से प्राप्त होने वाली सम्यक दृष्टि है | सत्य क्या है और असत्य क्या है ? महान क्या है और क्षुद्र क्या है ? हमें क्या स्मरण रखना चाहिए और क्या भूल जाना चाहिए इस बात को जानना आवश्यक है | इसी का नाम ज्ञान है और यह ज्ञान हमारी समस्त क्रियाओं का सूत्रधार होना चाहिए |

स्वामी नरेंद्रानंद ने कहा कि इससे कर्म में अनासक्ति का भाव आता है | हम कर्तव्य से मुँह न मोड़ें, अपितु समस्त प्राप्त कर्म अनासक्त होकर तथा इस बात पर दृष्टि रखते हुए कि, किस बात में जगत का हित है और किसमें जगत का अहित है उसकी अनुभूति होनी चाहिए। हमारी क्रिया स्वार्थ और अपने लाभ के लिए न हो | उन्होंने कहा कि हर सनातन धर्मावलंबी को अपनी परंपरा और संस्कार का पालन करना चाहिए। धर्म के प्रति समर्पण का भाव ही इंसान के प्रगति का मार्ग खोलता है। धर्म से ही व्यक्ति का अस्तित्व जुड़ा होता है। धर्म विहीन व्यक्ति पशु के समान होता है। धर्म व संस्कार की रक्षा के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का भाव हर व्यक्ति को रखना चाहिए। इस दौरान दिनेश द्विवेदी,  राम सूरत रामायणी, स्वामी बृज भूषण दास महाराज मौजूद रहे।


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