Freedom Fighters : ..और प्रयागराज में हंसते-हंसते पेड़ पर झूल गए थे आजादी के 864 दीवाने
Freedom Fighters 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ गदर में प्रयागराज में चौक के नीम के पेड़ पर भारतीयों को लटकाया गया था। शेरशाह सूरी मार्ग का नाम भी अब सरकारी दस्तावेजों में नहीं है।
प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। पुराने शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले चौक इलाके के नीम के पेड़ के पास से गुजरते ही जंग-ए-आजादी की याद बरबस ही आ आती है। सरकारी गजट के अनुसार 1857 में बिना अदालत और बिना किसी सुनवाई के अंग्रेजों के खिलाफ गदर में 864 से अधिक भारतीयों को नीम के पेड़ से फांसी पर लटकाया गया था। आजादी के बाद शहर के विकास पर अरबों रुपये फूंक दिए गए लेकिन ऐतिहासिक नीम के पेड़ को बचाने पर फूटी कौड़ी खर्च नहीं हुई।
अंग्रेजों के खिलाफ गदर का नीम का पेड़ सबसे बड़ा गवाह
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि अंग्रेजों के खिलाफ गदर का नीम का पेड़ सबसे बड़ा गवाह है। अंग्रेजों के जुल्म के साक्षी ऐतिहासिक नीम के पेड़ के चारों ओर दुकानों का झुंड है। पेड़ अब कमजोर हो रहा है। कभी पेड़ की डालियां दूर तक फैली थीं। इसके आसपास से गुजरने वाले मन ही मन में 1857 का गदर याद कर लेते हैं।
जांबाजों को सात नीम के पेड़ों पर फांसी दी गई : प्रो. योगेश्वर
प्रो. तिवारी बताते हैं कि 1857 में ऐतिहासिक नीम के पेड़ के पास छह और पेड़ थे। अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग लडऩे वाले भारतीय जांबाजों को एक नहीं, सात नीम के पेड़ों पर फांसी दी गई। आजादी के बाद किसी ने ऐतिहासिक पेड़ों का महत्व नहीं समझा। तब से एक-एक कर पेड़ धराशायी होते रहे और जमीनों पर कब्जा होता रहा। सात पेड़ों के समूह में अब एक नीम का पेड़ बचा है।
ऐतिहासिक शेरशाह सूरी मार्ग भी बना इतिहास
ऐतिहासिक नीम के पेड़ के सामने कभी शेरशाह सूूरी मार्ग था। शेरशाह सूरी मार्ग कोलकाता से शुरू होकर पाकिस्तान तक जाता था। डेढ़ दशक पहले शेरशाह सूरी मार्ग का वजूद सरकारी दस्तावेजों से मिटा दिया गया। अब ऐतिहासिक नीम के पेड़़ के सामने पहले का शेरशाह सूरी मार्ग एक सामान्य सड़क है। शेरशाह सूरी मार्ग का नाम अब नेशनल हाईवे दो हो गया है।